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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे ___ * पढमसमयमणियधिस्स अण्णं द्विदिखंडयं पलिदोवमस्स संखेअविभागों।
* अण्णमणुभागखंडयं सेसस्स अणंता भागा। * अण्णो हिदिबंधो पलिदोवमस्स संखेजदिभागेण हीणो ।
७४. एदाणि तिण्णि वि आवासयाणि द्विदि-अणुभागखंडय-ट्ठिदिबंधोसरणपबद्धाणि सुगमाणि । एत्थ डिदिखंडयावासये किंचि परूवेयव्वमत्थि ति तप्परूवणट्ठमुत्तरं पबंधमाह
* पढमट्ठिदिखंडयं विसमं जहण्णयादो उकसयं संखेनभागुत्तरं ।
७५. एतदुक्तं भवति-तिकालगोयराणं सव्वेसिमणियट्टिकरणाणं समाणसमये वट्टमाणाणं सरिसपरिणामत्तादो पढमट्ठिदिखंडयं पि तेसिं सरिसमेवेत्ति णावहारेयव्वं । किंतु तत्थ जहण्णुक्कस्सवियप्पसंभवादो केसि पि सरिसं, केसि चि विसरिसमिदि गहेयव्वं । जहण्णादो पुण उक्कस्सयं णियमा संखेज्जमागुत्तरमेवेत्ति । कुदो वुण सरिसपरिणामेसु अणियट्टिकरणेसु पढमट्ठिदिखंडयस्स विसरिसभावसंभवो त्ति णासंकणिज्जं; सरिसपरिणामेसु वि डिदिसंतकम्मविसेसमस्सियूण तहाभावसिद्धीए
* प्रथम समयवर्ती अनिवृत्तिकरण जीवके पल्योपमके संख्यातवें भागप्रमाण अन्य स्थितिकाण्डक होता है।
* शेष रहे अनुमागके अनन्त बहुभागप्रमाण अन्य अनुभागकाण्डक होता है। * पन्योपमके संख्यातवें भागहीन अन्य स्थितिबन्ध होता है।
$ ७४. स्थितिकाण्डक, अनुभागकाण्डक और स्थितिबन्धापसरणसे सम्बन्ध रखनेवाले ये तीनों ही आवश्यक सुगम हैं । यहाँपर स्थितिकाण्डक आवश्यकके विषयमें किंचित् प्ररूपण करने योग्य है, इसलिये उसका कथन करनेके लिये आगेके प्रवन्धको कहते हैं
* प्रथम स्थितिकाण्डक विषम होता है, जो जघन्यकी अपेक्षा उत्कृष्ट संख्यातवे भागप्रमाण होता है।
$ ७५. उक्त सूत्रका यह तात्पर्य है कि समान समयमें रहनेवाले त्रिकालगोचर समस्त अनिवृत्तिकरण जीवोंके सदृश परिणाम होनेके कारण उनके प्रथम स्थितिकाण्डक भी समान ही होता है ऐसा निश्चय नहीं करना चाहिये । किन्तु वहाँ जघन्य स्थितिकाण्डक और उत्कृष्ट स्थितिकाण्डक ये विकल्प सम्भव हैं, क्योंकि किन्हींके सदृश होता है और किन्हींके विसदृश होता है ऐसा यहाँ ग्रहण करना चाहिये । जो स्थितिकाण्डक जघन्यकी अपेक्षा उत्कृष्ट संख्यातवें भागप्रमाण अधिक होता है।
शंका-सदृश परिणामवाले अनिवृत्तिकरण जीवोंमें प्रथम स्थितिकाण्डकके विसदृशपना कैसे सम्भव है ?
समाधान-ऐसी आशंका नहीं करनी चाहिये, क्योंकि सदृश परिणाम होनेपर भी स्थिति