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खवगसेढीए अपुव्वकरणे कज्जविसेसो
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जहणादो पुण उक्कस्सयं संखेज्जगुणं होइ त्ति सिद्धं । एवं विसेसही णाहिय हिदिसंतकम्प्रियाणं पि दोण्हमपुव्व करणाणं खवगाणं ठिदिखंडयाणि विसेसही नाहियभावेणेवापुव्वकरणकालन्तरे पयट्टंति त्ति वत्तव्वं ।
* एसा ट्ठिदिखंडय परूवणा अपुच्चकरणे ।
$ ५२· एवमेसा अणंतरपरूविदा ठिदिखंडयपरूवणा अपुव्वकरणे दट्ठव्वा, पढमट्ठिदिखंडयपमाणात्रहारणपसंगेण सविस्से चैवापुव्वकरणद्धाए हिंदिखंडयपमाणस परुविदत्तादो । संपहि अपुग्वकरणपढमसमए हिदि- अणुभागखंडएहिं जह जाणि अण्णाणि वि आवासयाणि पारद्वाणि तेसिं परूवणमुवरिमो सुत्तरबंधो
* अपुव्वकरणस्स पढमसमए जाणि आवासयाणि ताणि वत्त
सामो
$ ५३. सुगमं ।
* तं जहा ।
५४. दापि सुगमं ।
* ठिदिखंडयमागाइदं पलिदोवमस्स संखेज्जदिभागो ।
होते हैं । परन्तु जघन्यसे उत्कृष्ट संख्यातगुणा होता है यह सिद्ध हुआ । इस प्रकार विशेष हीन और अधिक स्थितिसत्कर्मवाले दोनों ही अपूर्वकरण क्षपक जीवोंके स्थितिकाण्डक अपूर्वकरणके काल में विशेष हीन और अधिकरूपसे ही प्रवृत्त होते हैं ऐसा कहना चाहिये ।
विशेषार्थ - यहाँ चारित्रमोहनीयकी क्षपणा करनेवाले जीवोंके अपूर्वकरण गुणस्थान में प्रथमादि जघन्य और उत्कृष्ट स्थितिकाण्डकोंका विचार दो प्रकारसे किया गया है। उनमें से जो पहला प्रकार है उसको समझनेके लिये पुस्तक १२ दर्शनमोहक्षपणा अधिकार पृ० २९ देखना चाहिये । दूसरा प्रकार सुगम है ।
* यह स्थितिकाण्डकोंकी प्ररूपणा अपूर्वकरण में की गई ।
$ ५२. इस प्रकार यह अनन्तर कही गई स्थितिकाण्डकोंकी प्ररूपणा अपूर्वकरणमें जानना चाहिये, क्योंकि प्रथम स्थितिकाण्डकके अवधारण के प्रसंगसे पूरे अपूर्वकरण के काल में स्थितिrussia प्रमाणका कथन कर दिया। अब अपूर्वकरके प्रथम समयमें स्थितिकाण्डक और अनुभागकाण्डकोंके साथ जो अन्य आवश्यक भी प्रारम्भ होते हैं उनका कथन करनेके लिये आगेका सूत्रप्रबन्ध आया है
* अपूर्वकरणके प्रथम समयमें जो आवश्यक होते हैं उन्हें बतलावें ।
$ ५३. यह सूत्र सुगम है । * वह जैसे ।
$ ५४. यह सूत्र भी सुगम है ।
* पहले समय में पन्योपमके संख्यातवें भागप्रमाण स्थितिकाण्डकको ग्रहण
किया ।