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________________ खवगसेढीए अपुष्वकरणे कज्जविसेसो १६९ मेदप्पाबहुअमणुगंतव्वं । तं जहा–एयपदेसगुणहाणिट्ठाणंतरफद्दयाणि थोवाणि । अइच्छावणा अणंतगुणा । णिक्खेवो अणंतगुणो । अणुभागखंडयदीहत्तमणंतगुणमिदि । एदमप्पाबहुअं सव्वाणुभागखंडएसु दट्ठव्वं । एवं पढमाणुभागखंडयस्स पमाणविणिण्णयं कादूण संपहि पढमट्ठिदिखंडयपमाणाणु गर्म कुणमाणो उवरिमं सुत्तपबंधमाढवेदि * कसायक्खवगस्स अपुव्वकरणे पढमहिदिखंडयस्स पमाणाणुगमं वत्तइस्सामो। ४६. सुगममेदं पइण्णावक्कं । * तं जहा। ४७. सुगमं । * अपुवकरणे पढमट्टिदिखंडयं जहण्णयं थोवं । उक्कस्सयं संखेनगुणं । उक्कस्सयं पि पलिदोवमस्स संखेजदिभागो। । ६४८. एत्थ जहण्णयं संखेज्जगुणहीणढिदिसंतकम्मियस्स गहेयव्वं । उक्कस्सयं पुण संखेज्जगुणहिदिसंतकम्मियस्से गहेयव्वं । 'उक्कस्सयं पि पलिदोवमस्स बलसे अनुभागकांडकके माहात्म्यका बोध करानेके लिये यह अल्पबहुत्व जानना चाहिये । वह जैसेएकप्रदेशगुणहानिस्थानान्तर स्पर्धक स्तोक हैं। उससे अतिस्थापना अनन्तगुणी है। उससे निक्षेप अनन्तगुणा है । उससे अनुभागकाण्डक अनन्तगुणा बड़ा है । यह अल्पबहुत्व सभी अनुभागकाण्डकोंमें जानना चाहिये । इस प्रकार प्रथम अनुभागकाण्डकके प्रमाणका निर्णय करके अब प्रथम स्थितिकाण्डकके प्रमाणका अनुगम करते हुए आगेके सूत्रप्रबन्धको आरम्भ करते हैं * कषायोंकी क्षपणा करनेवाले जीवके अपूर्वकरणमें प्रथम स्थितिकाण्डकके प्रमाणका अनुगम करेंगे। ४६. यह प्रतिज्ञावाक्य सुगम है । * वह जैसे । ६ ४७. यह सूत्र सुगम है। * अपूर्वकरणमें प्रथम जघन्य स्थितिकाण्डक सबसे स्तोक है। उत्कृष्ट स्थितिकाण्डक संख्यातगुणा है। जो उत्कृष्ट होकर भी पन्योपमके संख्यातवें भागप्रमाण है। ४८. यहाँपर जघन्य स्थितिकाण्डक संख्यातगुणे हीन स्थितिसत्कर्मवालेका ग्रहण करना चाहिये, परन्तु उत्कृष्ट स्थितिकाण्डक उससे संख्यातगुणे स्थितिसत्कर्मवालेका ग्रहण करना चाहिये। १. आ प्रती ट्ठिदिसंतकम्मं इति पाठः । २. आ प्रती उक्कस्सयं पलिदो- इति पाठः । २२
SR No.090226
Book TitleKasaypahudam Part 14
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size40 MB
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