SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 147
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०६ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे २३८. जहा कोहेण उवहिदो उवसामगो हेट्ठा परिवदमाणगो माणमोकड्डियण पच्छा अंतोमुहुत्तेण माणवेदगद्धाए समत्ताए तिविहं कोहमोकड्डदि । एवमेसो वि माणगद्धाए तेत्तियमेत्ते चेव काले समइक्कते तम्हि चेव उद्देसे तिविहं कोहमोकड्डियण एक्कसमएणाणुवसंतं करेदि । किंतु पुचिल्लो कोधं वेदेमाणो संतो तिविहं कोहमोकड्डदि । एसो वुण माणवेदगो चेव होतो वि तिविहं कोहमोकड्डदि त्ति एदं णाणत्तमेत्थ दट्ठव्वं । जहा च कोहेण उवद्विदो तिविहं कोहमोकड्डियण कोहसंजलणस्स गुणसेढिणिक्खेवमुदयादिगलिदसेसायामेण णिक्खिवदि गाणावरणादिकम्मेहिं सरिसं ण तहा एत्थ उदयादिणिक्खेवसंभवो, किंतु उदयावलियबाहिरे चेव तिण्हं कोहाणं सेसकम्मेहिं सरिसायामेण गलिदसेसेण णिक्खिवदि ति एदं पि णाणत्तमेत्थ णायन्वमिदि पदुप्पायेमाणो सुत्तमुत्तरं भणइ ___ * ताधे चेव ओकड़ियण कोहं तिविहं पि आवलियवाहिरे गुणसेढीए इदरेसिं कम्माणं गुणसेदिणिक्खेवेण सरिसीए णिक्खिवदि तदो सेसे सेसे णिक्खिवदि। $ २३९. गयत्थमेदं सुत्तं । * एदं णाणत्तं माणेण उवट्ठिदस्स उवसामगस्स तस्स चेव पडिवदमाणगस्स। $ २३८. जिस प्रकार क्रोधसे चढ़ा हुआ उपशामक जीव नीचे गिरता हुआ मानका अपकर्षण करके अनन्तर पूर्व अन्तर्मुहर्तकालके द्वारा मानवेदककालके समाप्त होनेपर तीन प्रकारके क्रोधका अपकर्षण करता है उसी प्रकार यह जीव भी अर्थात् मानके उदयसे चढ़ा हुआ जीव भी उतने ही कालमें मानवेदककालके निकल जानेपर उसी स्थानमें तीन प्रकारके क्रोधका अपकर्षण करके एक समयमें उन्हें अनुपशान्त करता है। किन्तु पहलेका जीव क्रोधका वेदन करता हुआ तीन प्रकारके क्रोधका अपकर्षण करता है। पर यह मानका ही वेदन करनेवाला होकर भी तीन प्रकारके क्रोधका अपकर्षण करता है। इस प्रकार यह नानापन यहाँ जानना चाहिये। और जिस प्रकार क्रोधसंज्वलनसे चढ़ा हुआ जीव तीन प्रकारके क्रोधका अपकर्षण करके क्रोधसंज्वलनके गुणश्रेणिनिक्षेपको उदयादि गलितशेष आयामरूपसे ज्ञानावरणादि कर्मोके समान निक्षिप्त करता है उस प्रकार यहाँ तीन प्रकारके क्रोधोंका उदयादि गुणश्रेणिनिक्षेप सम्भव नहीं है, किन्तु उदयावलिके बाहर ही उक्त तीन कर्मोंका शेष कर्मोंके सदश आयाम और गलितशेष रूपसे गणश्रेणिनिक्षेप करता है। इस प्रकार यह भी यहाँपर फरक जानना चाहिये इस बातका कथन करते हुए आगेके सूत्रको कहते हैं * उसी समय तीन प्रकारके क्रोधका अपकर्षण करके उसे इतर कर्मोंके गुणश्रेणिनिक्षेपके समान उदयावलि बाह्य गुणश्रेणिमें निक्षिप्त करता है तथा प्रत्येक समयमें शेष-शेषमें निक्षेप करता है। $ २३९. यह सूत्र गतार्थ है। * मानसे श्रेणिपर चढ़कर गिरनेवाले उसी उपशामककी प्ररूपणामें यह
SR No.090226
Book TitleKasaypahudam Part 14
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size40 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy