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________________ उवसामणाक्खण पडिवदमाणपरूवणा ८५ $ १८९. जत्तोप्पहुडि णामागोदादिकम्माणं पढमदाए असंखेवस्सिओ ट्ठिदिबंधो आढतो तत्तोप्पहुडि जाव णिपच्छिमो पलिदो० असंखे० भागिओ ट्ठिदिबंधोति दम्म अंतरे पुणे पुणे ट्ठिदिबंधे जो अण्णो द्विदिबंधो सो असंखेज्जगुणवडीए वढदि ति दट्ठव्वो, तत्थ पयारंतरासंभवादोत्ति भणिदं होदि । एवमेदेण कमेण पलिदो ० असंखेज्जभागियं' डिदिबंधविसयं वोलीणस्स सव्वेसिं कम्माणमेक्कवारेण पलिदो ० संखे० भागिओ पढमो ट्ठिदिबंधो आढविज्जदित्ति पदुष्पायणट्ठमिदमाह - * एदेण कमेण सत्तण्हं पि कम्माणं पलिदो० असंखे० भागियादो द्विदिबंधादो एक्कसराहेण सत्तण्हं पि कम्माणं पलिदो • संखे० भागिओ हिदिबंधो जादो' । ० $ १९०. किमेसो पलिदो० संखे० भागिओ हिदिबंधो जायमाणो सत्तण्हं पि कम्माणं अक्कमेणेव जादो आहो कमेणेति पुच्छिदे, अक्कमेणेति भणामो । कुदो एदं णव्वदे ? एक्कसराहेणेत्ति सुत्तणिदेसादो । कधं पुणो चढमाणस्स कमेण समुवलद्धसरूवो दूराव किट्टीविसओ ओदरमाणस्स एक्कवारेणेव संभवदित्ति णासंकणिज्जं, पडिवादबाधा है । $ १८९. जिस स्थान से लेकर नाम और गोत्र आदि कर्मोंका प्रथम बार असंख्यातगुणा स्थितिबन्ध आरम्भ हुआ था वहाँसे लेकर जब जाकर अन्तिम पल्योपमका असंख्यातवाँ भागप्रमाण स्थितिबन्ध प्राप्त होता है इस कालके भीतर पुनः पुनः स्थितिबन्धके पूर्ण होनेपर जो अन्य स्थितिबन्ध होता है वह असंख्यातगुणी वृद्धिसे बढ़ा हुआ होता है ऐसा यहाँ जानना चाहिये, क्योंकि वहाँ दूसरा प्रकार सम्भव नहीं है यह उक्त कथनका तात्पर्य है । इस प्रकार इस क्रमसे पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण स्थितिबन्धके स्थानको उल्लंघन करनेवाले जीवके सभी कर्मोंका एक बारमें पल्योपमके संख्यातवें भागप्रमाण प्रथम स्थितिबन्ध आरम्भ होता है इस बातका कथन करने के लिए इस सूत्र को कहते हैं * इसी क्रमसे सातों ही कर्मोंका पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण स्थितिबन्धसे एक बार में सातों ही कर्मोंका पल्योपमके संख्यातवें मागप्रमाण स्थितिबन्ध हो जाता है । $ १९०. शंका - यह पल्योपमका संख्यातवाँ भागप्रमाण स्थितिबन्ध उत्पन्न होता हुआ क्या सातों कर्मका अक्रमसे ही हो जाता है या क्रमसे होता है ? समाधान - ऐसा पूछने पर अक्रमसे हो जाता है ऐसा हम कहते हैं । शंका - यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ? समाधान - 'एक्कसराहेण' इस प्रकार सूत्रमें निर्देश होनेसे जाना जाता है । शंका—चढ़नेवालेके क्रमसे उपलब्ध होनेवाला दूरापकृष्टिविषयक स्थितिबन्ध उतरनेवाले १. ता०प्रतौ कम्मपयडीणं इति पाठः । २. ता०प्रतौ पलिदो० इत्यतः जादो इति यावत् टीकायां सन्मितः । ३. ता० प्रती संखेज्जभागियं इति पाठः ।
SR No.090226
Book TitleKasaypahudam Part 14
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size40 MB
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