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भाग-14
उवसामणाक्खण पडिवदमाणपरूवणा
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* जाघे असंखेज्जलोगपडिभागे समयपबद्धस्स उदीरणा ताघे मोहणीयस्स द्विदिबंधो थोवो, घादिकम्माणं द्विदिबंधो असंखेज्जगुणो, णामागोदाणं ठिदिबंधों असंखेज्जगुणो, वेदणीयस्स द्विदिबंधो विसेसाहिओ । $ १८४. सुगमं । पुव्वत्तस्सेव अप्पा बहुअपबंधस्स एत्थ वि संभालणफलत्तादो । एवमेदेण अप्पाबहुअविहाणेण संखेज्जाणि द्विदिबंधसहस्साणि असंखेज्जगुणवड्डीए कादून ट्ठा ओदरमाणस्स अंतोमुहुत्तं गंतूण तदो अण्णारिसो ट्ठिदिबंधप्पाबहुअकमो जायद ति जाणावणफलो उत्तरसुत्तणिद्देसो
* एदेण कमेण द्विदिबंधसहस्सेसु गदेसु तदो एक्कसराहेण मोहणीयस्स द्विदिबंधो थोवो, णामागोदाणं ठिदिबंधो असंखेज्जगुणो, घादिकम्माणं ठिदिबंधो विसेसाहिओ, वेदणीयस्स द्विदिबंधो विसेसाहिओ ।
$ १८५. कुदो १ एवमेत्थुद्द से एक्कवारेणेव तिन्हं घादिकम्माणं विदिबंघादो णाम गोदट्ठदिबंधस्स ट्ठा विसेसहाणीए पडिवादो वेदणीयट्ठिदिबंधस्स च घादिकम्मद्विदिबंधादो विसेसाहियभावपरिणामो ति णासंकणिज्जं, परिणामविसेससमा सेज्ज तहाभावसिद्धीए णिब्बाहमुवलंभादो । जम्हि उह से णामागोदाणं द्विदिबंधादो
* जिस समय असंख्यात लोकके प्रतिभागके अनुसार समयप्रबद्धकी उदीरणा प्रारम्भ होती है उस समय मोहनीय कर्मका स्थितिबन्ध सबसे अल्प होता है उससे घातिकर्मोंका स्थितिबन्ध असंख्यातगुणा होता है उससे नाम और गोत्रकर्मका स्थितिबन्ध असंख्यातगुणा होता है और उससे वेदनीय कर्मका स्थितिबन्ध विशेष अधिक होता है ।
१८४. यह सूत्र सुगम है, क्योंकि यहाँपर भी पूर्वके अल्पबहुत्वप्रबंधकी सम्हाल करना ही इसका फल है । इस प्रकार इस अल्पबहुत्वविघिसे असंख्यात गुणवृद्धिरूपसे संख्यात हजार स्थितिबंध करके नीचे उतरनेवाले जीवके अन्तर्मुहूर्त काल जाकर तत्पश्चात् अन्य प्रकारका स्थितिबन्धके अल्पबहुत्वका क्रम प्रारम्भ होता है इस प्रकारका ज्ञान करानेके लिए आगे के सूत्रका निर्देश करते हैं
* इस क्रमसे हजारों स्थितिबन्धोंके जानेपर पश्चात् एक ही बारमें मोहनीय कर्मका स्थितिबन्ध सबसे अल्प होता है, उससे नाम और गोत्रकर्मका स्थितिबन्ध असंख्यातगुणा होता है, उससे घातिकर्मोंका स्थितिबन्ध विशेष अधिक होता है और उससे वेदनीयकर्मका स्थितिबन्ध विशेष अधिक होता है ।
$ १८५. शंका- इस स्थानपर एक ही बारमें तीन घातिकर्मोंके स्थितिबन्धसे नाम और गोत्रकर्मका स्थितिबन्ध नीचे अर्थात् कम होकर विशेष हीन कैसे हो गया है तथा वेदनीयकर्मका स्थितिबन्ध घातिकर्मो के स्थितिबन्धसे विशेषाधिकभावरूप परिणामको कैसे प्राप्त हो गया है ?
समाधान - ऐसी आशंका नहीं करनी चाहिये, क्योंकि परिणामविशेषका आलम्बन लेकर उस प्रकारकी सिद्धि निर्बाधरूपसे पाई जाती है । उपशामकके जिस स्थानपर नाम और गोत्रकर्मके
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