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________________ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे * तदो से काले पुरिसवेदगस्स बंधगो जादो । $ १६२. कुदो १ तम्हि समए अवगदवेदपज्जायपरिक्खएण सवेदभावे वट्टमाणस्स पुरिसवेदबंधसंभवं पडि विसंवादाणुवलंभादो । एदम्मि चेव समए पुरिसवेदेण सह छण्णोकसायाणमुवसामणक्खएण अणुवसंतभावे संकमोकडणादिसंभवो अंतरावरणं गुणसेढिणिक्खेवविसेसो च जुगवं पयट्टदि त्ति जाणावणट्टमुत्तरो सुत्तपबंधो— ७० * ताघे चेव सत्तण्हं कम्माणं पदेसग्गं पसत्थउवसामणाए सव्व - मणुवसंतं ताधे चैव सत्त कम्मंसे ओकड्डियूण पुरिसवेदस्स उदयादिगुणसेढिं' करेदि, छण्हं कम्मंसाणमुदयावलियबाहिरे गुणसेटिं करेदि, गुणसेढि - णिक्खेवो बारसहं कसायाणं सत्तण्हं णोकसायवेदणीयाणं संसाणं च आउगवज्जाणं कम्माणं गुणसेढिणिक्खेवेण तुल्लो सेसे सेसे च णिक्खेवों । १६३. सुगमो एसो सुत्तपबंधो । संपहि एदम्मि चैव समए पुरिसवेदादीणं डिदिबंधपमाणावहारणडुमुत्तरमुत्तणिद्देसो - * ताधे चेव पुरिसवेदस्स द्विदिबंधो बत्तीसवस्साणि पडिवुण्णाणि, समयमें पाँच प्रकारके मोहनीय कर्मका बन्ध करनेवाला हो जाता है इस बातका ज्ञान कराने के लिये आगेका सूत्र कहते हैं * पश्चात् अनन्तर समयमें पुरुषवेदका बन्धक हो जाता है । $ १६२. क्योंकि उसी समय अपगतवेद पर्यायका क्षय हो जानेसे सवेदभावमें विद्यमान हुए जीवके पुरुषवेदका बन्ध होनेके प्रति कोई विसंवाद नहीं पाया जाता तथा इसी समय पुरुषवेदके साथ छह नोकषायोंके उपशमभावका क्षय हो जानेसे अनुपशम अवस्थामें संक्रम, अपकर्षण आदिका सम्भव तथा अन्तरका भरना और गुणश्रेणि निक्षेपविशेष ये कार्य एक साथ प्रवृत्त होते हैं इस बातका ज्ञान करानेके लिये आगे सूत्र प्रबन्धको कहते हैं * उसी समय सात कर्मोंका सम्पूर्ण प्रदेशपुंज प्रशस्त उपशामनासे अनुपशान्त हो जाता है तथा उसी समय सात कर्मोंके प्रदेशपुंजका अपकर्षण करके पुरुषवेदकी उदयादि गुणश्रेणिको करता है । तथा छह कर्मोंके प्रदेशपु जकी उदयावलिके बाहर गुणश्रेणिको करता है । बारह कषाय, सात नोकषायवेदनीय और आयुकर्मको छोड़कर शेष कर्मोंका गुणश्रेणिनिक्षेप गुणश्रेणिनिक्षेपकी अपेक्षा समान होता है तथा शेष शेषमें निक्षेप होता है । $ १६३. यह सूत्रप्रबन्ध सुगम है । अब पुरुषवेद आदिके स्थितिबन्धके प्रमाणका निश्चय करने के लिये आगेके सूत्रका निर्देश करते हैं * उसी समय पुरुषवेदका स्थितिबन्ध पूरा बत्तीस वर्षप्रमाण होता है, १. ता० प्रती उदयादिगुण सेढिसीसयं इति पाठः । २. ता०प्रती णिक्खिवदि इति पाठः ।
SR No.090226
Book TitleKasaypahudam Part 14
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size40 MB
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