________________
उवसामणाक्खएण पडिवदमाणपरूवणा
६१
कायूण गुणसेढिविण्णासं करेदिति । एवमेदेण कमेण लोभवेदगद्धाए णिट्ठिदाए मायावेदगो होयूण एदाणि आवासयाणि करेदि ति पदुप्पाएमाणो उवरिमं सुतपबंधमाद
* से काले मायं तिविहमोकड्डियूण मायासंजलणस्स उदयादि· गुणसेढी कदा, दुविहाए मायाए आवलियबाहिरा गुणसेढी कदा |
$ १४०. लोभवेदगद्धाए णिट्टिदाए तदनंतरसमए चैव विदियट्टिदीदो तिविहं मायामकड्डियूण देण विहाणेण गुणसेढिणिक्खेवं करेदित्ति वृत्तं होइ । तं जहातिविहं मायमोकड्डेमाणो मायासंजलणस्स उदयादिगुणसेढिणिक्खेवमवट्ठिदायामेण सगवेदगद्धादो आवलियब्भहियें काढूण णिक्खिवदि । एवं चैव दोन्हं मायाणं, णवरि उदयावलियबाहिराए तत्थ गुणसेढी णिक्खित्ता । कुदो एवमिदि चे १ ण, तेसिमवे - दिज्जमाणाणमुदयावलियन्भंतरे पदेसणिसेगासंभवादो ।
$ १४१. संपहि ताहे तिविहस्स लोहस्स गुणसेढिणिक्खेवो केरिसो त्ति आसं
काए इदमाह–
* पढमसमयभायावेदगस्स गुणसेढिणिक्स्वेवो तिविहस्स लोहस्स
तीन प्रकार के लोभकी लोभवेदककालसे एक आवलि अधिक प्रमाणवाली गुणश्रेणिको रचना करता है । इसप्रकार इस क्रमसे लोभवेदक कालके समाप्त होनेपर मायावेदक होकर इन आवश्य करता है इस बातका कथन करते हुए आगेके सूत्र प्रबन्धको कहते हैं
* तदनन्तर समयमें तीन प्रकारकी मायाका अपकर्षण करके मायासंज्वलनकी उदयादि गुणश्रेणि करता है तथा अन्य दो प्रकारकी मायाकी आवलिबाह्य गुणश्रेणि करता है ।
$ १४०. लोभवेदक कालके समाप्त होनेपर तदनन्तर समय में ही तीन प्रकारकी मायाका अपकर्षण करके इस विधिसे गुणश्रेणि निक्षेप करता है यह इस सूत्र का तात्पर्य है । वह जैसेतीन प्रकारकी मायाका अपकर्षण करता हुआ मायासंज्वलनकी अवस्थित आयामवाली उदयादि गुण को अपने वेदक कालसे एक आवलि अधिक रूपसे रचता है । इसीप्रकार शेष दोनों मायाओं की गुणश्रेणिरचना करता है। इतनी विशेषता है कि उनकी उदयावलि बाह्य गुणश्रेणि रचना करता है ।
शंका- ऐसा क्यों ?
समाधान — नहीं, क्योंकि वे नहीं वेदी जानेवाली प्रकृतियाँ हैं, इसलिए उनका उदयावलिके भीतर प्रदेश निषेकोंकी गुणश्रेणि रचना होना असम्भव है ।
$ १४१. अब उस समय तीन प्रकारके लोभका गुणश्रेणि निक्षेप किस प्रकारका है ऐसी आशंका होनेपर इस सूत्र को कहते हैं
* प्रथम समय में मायावेदकके तीन प्रकारके लोभ और तीन प्रकारके मायाका