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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [दसणमोहक्खवणा असंखेजगुणहाणिद्विदिखंडएसु पादेक्कमणुभागखंडयसहस्साविणाभावीसु गदेसु तदो मिच्छत्तस्स चरिमद्विदिखंडयभागाएतेण उदयावलियबाहिरं सव्वमेव मिच्छत्तट्ठिदिसंतकम्ममागाइदं । सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणं पुण हेट्ठा पलिदोवमस्स असंखेजदिभागमेत्तं योत्तूण सेसा असंखेजा भागा आगाइदाणि त्ति भणिदं होइ ? एत्तियमेत्तकालं तिण्हं कम्माणं सरिसमेव द्विदिखंडयघादं कुणमाणो एत्थुद्देसे किमट्ठमेवं विसरिसभावेण द्विदिखंडयमागाएदि त्ति णासंकणिज्जं, पुव्वमेव विणस्संतस्स मिच्छत्तकम्मरस एत्थुद्दे से विसेसघादसंभवं पडि विरोहाभावादो। एवं मिच्छत्तस्स चरिमविदिखंडयमागाएदणंतोमुहुत्तेण णिद्ववेमाणो मिच्छत्तचरिमफालिं किं सम्मामिच्छत्तम्सुवार संछुहदि आहो सम्मत्तस्से त्ति पुच्छिदे णियमा सम्मामिच्छत्तस्सुवरि संछुहदि त्ति णिच्छओ कायव्यो।
प्रत्येक स्थितिकाण्डक हजारों अनुभागकाण्डकोंका अविनाभावी है ऐसे संख्यात हजार असंख्यात गुणहानिस्वरूप स्थितिकाण्डकोंके व्यतीत होनेपर अनन्तर मिथ्यात्वके अन्तिम स्थितिकाण्डकको ग्रहण करते हुए इस जीवने मिथ्यात्वके उदयावलिके बाहरके समस्त ही स्थितिसत्कर्मको ग्रहण किया। परन्तु सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके, नीचे पल्योपमके
असंख्यातवें भागप्रमाण, द्रव्यको छोड़कर शेष असंख्यात बहुभागप्रमाण द्रव्यको ग्रहण किया यह उक्त कथनका तात्पर्य है।
शंका—इतने काल तक तीनों कर्मोंके सदृश ही स्थितिकाण्डकघात करनेवाला जीव इस स्थान पर इस प्रकार विसदृशरूपसे स्थितिकाण्डकघातको किसलिये ग्रहण करता है ?
समाधान-ऐसी आशंका नहीं करनी चाहिए, क्योंकि इन तीनों कर्मों में सबसे पहले ही विनाशको प्राप्त होनेवाले मिथ्यात्वकर्मका इस स्थान पर विशेष घात सम्भव है इसमें कोई विरोध नहीं है।
इस प्रकार मिथ्यात्वके अन्तिम स्थितिकाण्डकको ग्रहण कर अन्तर्मुहूर्त काल द्वारा उसका घात करता हुआ मिथ्यात्वकी अन्तिम फालिको क्या सम्यग्मिथ्यात्वके ऊपर प्रक्षिप्त करता है या सम्यक्त्वके ऊपर ऐसी पृच्छा होनेपर नियमसे सम्यग्मिथ्यात्वके ऊपर प्रक्षिप्त करता है ऐसा निश्चय करना चाहिए। ... विशेषार्थ-जिस समय यह जीव मिथ्यात्व कर्मकी क्षपणाके लिये मिथ्यात्वके उदयावलि बाह्य समस्त द्रव्यको अन्तिम काण्डकके रूपमें ग्रहण करता है उस समय वह सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण द्रव्यको छोड़कर शेष असंख्यात बहुभागप्रमाण द्रव्यको घात करनेके लिये ग्रहण करता है । इस पर यह शंका उठाई गई है कि यहाँसे पूर्व तीनों कर्मोंके सदृश ही स्थितिकाण्डकघात होते रहे, यहाँ इस विषमत का क्या कारण है ? इसका यहाँ जो समाधान किया गया है उसका आशय यह है कि मिथ्यात्व कर्मका सबसे पहले घात होता है, इसलिए यहाँपर उसका शेष दो कोंकी अपेक्षा विशेष घात होनेमें कोई विरोध नहीं है।