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गाथा ११४]
अपुवकरणे कज्जविसेसरूपवणा * एवमंतोमुहुत्त जाव अणुभागखंडयं पुण्णं ।
$ ४७. एवमेदीए विदियसमयपरूवणाए अणूणाहियाए णेदव्वं जाव अंतोमुहुत्तमुवरि गंतूण पढमाणुभागखंडयं णिद्विदमिदि। तम्मि णिद्विदे किंचि णाणत्तमत्थि । तं जहा-तं चेव हिदिखंडयं, सो चेव द्विदिबंधो, सा चेव पोराणिया उदयावलियबाहिरे गलिदसेसा गुणसेढी । अणुभागखंडयं षुण अण्णमाढविज्जइ, पढमाणुभागखंडयुक्कीरणद्धाए तत्थ परिसमत्तीदो त्ति एसो एदस्स सुत्तस्स भावत्थो। पढमहिदिखंडगद्धा पुण णाज्ज वि समप्पदि, तिस्से संखेज्जदिभागस्सेव गयत्तादो ।
* एवमणुभागखंडयसहस्सेसु पुण्णेसु अण्णं विदिखंडयं हिदिबंधमणुभागखंडयं च पट्टवेइ।
४८. एवमेदीए परूवणाए संखेज्जसहस्समेत्तेसु अणुभागखंडएसु पुण्णेसु ताधे पढमट्टिदिखंडयं पढमो द्विदिबंधो तदित्थमणुभागखंडयं च जुगवं परिसमत्ताणि । तकाले चेव अण्णं द्विदिखंडयमण्णो द्विदिबंधो अण्णं च अणुभागखंडयमाढवेदि त्ति एसो एत्थ सुत्तत्थणिच्छओ। संपहि पढमद्विदिखंडयायामादो विदियादिविदिखंड
* इस प्रकार एक अनुभागकाण्डकके पूर्ण अर्थात् व्यतीत होनेके अन्तर्महर्त काल तक जानना चाहिए।
४७. इसप्रकार दूसरे समयकी न्यूनाधिकतासे रहित इस प्ररूपणाको अन्तर्मुहर्त काल ऊपर जाकर प्रथम अनुभागकाण्डकके समाप्त होनेतक ले जाना चाहिए। उसके समाप्त होनेपर कुछ भेद है। यथा-वही स्थितिकाण्डक है, वही स्थितिबन्ध है, वही पुरानी उदयावलिके बाहर गलितावशेष गुणश्रेणि है । परन्तु यहाँसे अन्य अनुभागकाण्डकका आरम्भ करता है, क्योंकि प्रथम अनुभागकाण्डकका उत्कीरणकाल वहाँ समाप्त हो जाता है यह इस सूत्रका भावार्थ है। परन्तु प्रथम स्थितिकाण्डक काल अभी भी समाप्त नहीं हुआ है, क्योंकि अभी उसका संख्यातवाँ भाग ही व्यतीत हुआ है।
* इसप्रकार हजारों अनुभागकाण्डकोंके पूर्ण होनेपर अन्य स्थितिकाण्डक, अन्य स्थितिबन्ध और अन्य अनुभागकाण्डकको आरम्भ करता है।
$४८. इसप्रकार इस प्ररूपणाके अनुसार संख्यात हजार अनुभागकाण्डकोंके समाप्त होनेपर उस समय प्रथम स्थितिकाण्डक, प्रथम स्थितिबन्ध और उस काल में प्रवृत्त अनुभागकाण्डक एक साथ समाप्त होते हैं । तथा उसी समय अन्य स्थितिकाण्डक, अन्य स्थितिबन्ध
और अन्य अनुभागकाण्डकको आरम्भ करता है इसप्रकार यह यहाँपर इस सूत्रके अर्थका निश्चय है । अब प्रथम स्थितिकाण्डकके आयामसे दूसरे स्थितिकाण्डकका आयाम सदृश
१. ता०प्रतौ णिट्ठिदमिदं इति पाठः ।