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गाथा १२३ ]
चरितमोहणीय-उवसामणाए करणकज्जणिद्दसो
णाणावरण- दंसणावरण-अंतराइयाणमहोरत्तस्संतो । णामा- गोद-वेदणीयाणं at वस्साणमंतो ।
$ २७४. एत्थ किट्टीकरणद्धाए चरिमट्ठिदिबंधो णाम बादरसांपराइयरस चरिमो ट्ठिदिबंधो घेत्तव्वो । एसो च लोहसंजलणस्स अंतोमुहुत्तिओ होदूण खवगसेढीए चरिम
दिबंधादो दुगुणमेत्तो होइ । णाणावरण- दंसणावरण- अंतराइयाणं च अहोरत्तस्संतो हो खगस्स बादरसांपराइय चरिमट्ठिदिबंधादो दुगुणमेत्तो घेत्तव्वो । णामा-गोदवेदणीयाणं पि संखेज्जवस्ससहस्सियादो ट्ठिदिबंधादो परिहाइदूण वेण्हं वस्साणमंतो पट्टमाणो एत्थतणो द्विदिबंधो बादरसांपराइयक्खवगस्स चरिमट्ठिदिबंधादो दुगुणपाणो चैत्र महेयव्वो, तत्थतण द्विदिबंधस्स वस्सस्संतो इदि पमाणपरूवणोवलंभादो । संपहि बादरसां पराइयपढमट्ठिदी जाघे समययूणावलियमेत्तियमेत्ता सेसा ताघे जो विसेस संभवो तप्परूवणट्ठमुत्तरमुत्तावयारो
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* तिस्से किट्टीकरणद्धाए तिसु आवलियासु समयूणासु सेसासु दुविहो लोहो लोहसंजलणे ण संकामिज्जदि सत्थाणे चेव उवसामिज्जदि ।
$ २७५. कुदो १ संकमणोवसामणावलियाण मेत्तपडिपुण्णाण मसंभवादो । तम्हा तदवत्थाए दुविहो लोहो लोहसंजलणे ण संकामिज्जदि । किंतु सत्थाणे चेव उवसामेदि है । ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अनन्तराय कर्मोंका कुछ कम दिन-रात्रिप्रमाण होता है तथा नाम गोत्र और वेदनीय कर्मोंका कुछ कम दो वर्षप्रमाण होता है ।
$ २७४. यहाँपर कृष्टिकरणके कालमें जो अन्तिम स्थितिबन्ध होता है वह बादरसाम्परायिक जीवका अन्तिम स्थितिबन्ध है ऐसा ग्रहण करना चाहिये । वह लोभसंज्वलनका अन्तर्मुहूर्त प्रमाण होता है जो क्षपकश्रेणिमें होनेवाले स्थितिबन्धसे दूना है । ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तरायकर्मका कुछ कम दिन-रात्रिप्रमाण होता है जो क्षपकके बादरसाम्परायिक गुणस्थानमें होनेवाले अन्तिम स्थितिबन्धसे दूना ग्रहण करना चाहिए। तथा नाम, गोत्र और वेदनीय कर्मके भी संख्यात हजार वर्षप्रमाण स्थितिबन्धसे घटकर इस स्थलपर प्राप्त होनेवाला कुछ कम दो वर्ष प्रमाण स्थितिबन्ध बादरसाम्परायिक क्षपकके अन्तिम स्थितिबन्धसे दूना ही ग्रहण करना चाहिये, क्योंकि क्षपकश्रेणिमें इस स्थलपर प्राप्त होनेवाला स्थितिबन्ध एक वर्षसे कुछ कम होता है इस प्रकार के प्रमाणकी प्ररूपणा पाई जाती है। अब जब बादरसाम्परायिक ras प्रथम स्थिति एक समय कम एक समय आवलिप्रमाण शेष रहती है तब जो विशेष सम्भव है उसका कथन करनेके लिए आगेके सूत्रका अवतार करते हैं
* उस कृष्टिकरण के कालमें एक समय कम तीन आवलियाँ शेष रहनेपर दो प्रकारका लोभ लोभसंज्वलन में संक्रान्त नहीं होता है । स्वस्थान में ही उपशमाया जाता है ।
$ २७५. क्योंकि संक्रमणावलि और उपशमनावलिका यहाँपर परिपूर्ण होना असम्भव है, इसलिये उस अवस्थामें दो प्रकारका लोभ लोभसंज्वलनमें नहीं संक्रमाता है, किन्तु