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गाथा १२३ ]. चरित्तमोहणीय-उवसामणाए करणकज्जणिहेसो
२७३ सामेदि तमसंखेनगुणं । एवमसंखेजगुणाए सेढीए उवसामेदि जाव उवसंतं ।
१७४. कुदो एवं ? समयं पडि तकारणपरिणामेसु वड्डमाणेसु उवसामिजमाणपदेसग्गस्स तहाभावसिद्धीए विरोहाभावादो । एवं परिणामपाहम्मेण समयं पडि असंखेज्जगुणाए सेढीए णqसयवेदपदेसग्गमुवसामेमाणस्स पुणो वि उवसामिज्जमाणपदेसमाहप्पजाणावणद्वमिदमप्पाबहुअसुत्तमोइण्णं
* णवुसयवेदस्स पढमसमयउवसामगस्स जस्स वा तस्स वा कम्मस्स पदेसग्गस्स उदीरणा थोवा ।
$१७५. एत्थ जस्स वा तस्स वा 'कम्मस्से त्ति वयणं णवंसयवेदावहारणणिरायरणदुवारेण सव्वेसिमेव वेदिजमाणपयडीणमुदीरणादव्वस्स गहणटुं । एसा च उदीरणा असंखेजसमयपबद्धपमाणा होदूण उवरिमपदावेक्खाए थोवा ति गहेयव्वा ।
* उदयो असंखेनगुणो।
$ १७६. एत्थ वि जस्स वा तस्स वा कम्मस्से त्ति अहियारसंबंधो कायव्यो । तेण वेदिजमाणसव्वपयडोणमुदीरणादव्वादो उदयो असंखेजगुणो ति गहेयव्वो । कुदो एदस्सासंखेजगुणत्तणिण्णयो चे ? अंतोमुहुत्तसंचिदगुणसेढिगोवुच्छमाहप्पादो। जिस प्रदेशजको उपशमाता है वह उससे असंख्यातगुणा है। इस प्रकार उसके उपशान्त होने तक असंख्यातगुणी श्रेणिरूपसे उपशमाता है।
६१७४. शंका-ऐसा किस कारणसे है ?
समाधान—क्योंकि प्रति समय कारणभूत परिणामोंकी वृद्धि होनेपर उपशमाये जानेवाले प्रदेशपुजके उस प्रकारसे सिद्धि होनेमें विरोधका अभाव है। इस प्रकार परिणामोंके माहात्म्यवश प्रति समय असंख्यातगुणी श्रेणिरूपसे नपुंसकवेदके प्रदेशपुञ्जको उपशमानेवाले जीवके फिर भी उपशमाये जानेवाले प्रदेशोंके माहात्म्यका ज्ञान करानेके लिए यह अल्पबहुत्व सूत्र आया है
___ * प्रथम समयमें नपुंसकवेदके उपशामकके जिस-किसी कर्मके प्रदेशपुञ्जकी उदीरणा सबसे स्तोक है।
६ १७५. यहाँ सूत्र में 'जिस-किसी कर्मके' यह वचन नपुंसकवेदके अवधारणके निराकरणद्वारा सभी वेदी जानेवाली प्रकृतियोंके उदीरणाद्रव्यके ग्रहणके लिए आया है। यह उदीरणा असंख्यात समयप्रबद्धप्रमाण होकर आगे कहे जानेवाले पदोंकी अपेक्षा स्तोक होती है ऐसा ग्रहण करना चाहिये ।।
* उससे उदय असंख्यातगुणा है।
६ १७६. यहाँ भी 'जस्स वा तस्स वा कम्मरस' इस वचनका अधिकारके साथ सम्बन्ध करना चाहिये । इसलिये वेदी जानेवाली सभी प्रकृतियोंके उदीरणासम्बन्धी द्रव्यसे उदयसम्बन्धी द्रव्य असंख्यातगुणा है ऐसा ग्रहण करना चाहिये।
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