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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ चरित्तमोहणीय-उवसामणा * एदेसि कम्माणमखवगो अणुवसामगो सव्वो सव्वघादिं बधदि ।
६१३८. संसारावस्थाए सव्वत्थ खवगोवसमसेढीसु च सुगमं चेदमप्पाहुबअं, देसघादिकरणादो हेट्ठा सव्यो जीवो सव्वघादि चेव णिरुद्धकम्माणमणुभागं बंधदि त्ति वुत्तं होइ । संपहि एदेसि कम्माणं देसघादिकरणचरिमसमये द्विदिबंधो केरिसो होइ त्ति आसंकाए इदमाह
* हिदिबंधो मोहणीए थोवो । णाणावरण-दसणावरण-अंतराइएसु हिदिबंधो असंखेजगुणो । णामागोदेसु हिदिबंधो असंखेजगुणो। वेदणीयस्स हिदिबंधो विसेसाहिओ।
६ १३९. एदेसु कम्मेसु देसघादीसु जादेसु वि पुव्वुत्तो चेव अप्पाबहुअपयारो, णस्थि एत्थ पयारंतरमिदि पदुप्पायणफलत्तादो। संपहि एत्तो उवरि कीरमाणकजभेदपदुप्पायणमुत्तरो सुत्तपबंधो
* तदो देसघादिकरणादो संखेजसु ठिदिवसहस्सेसु गदेसु अंतरकरणं करेदि।
१४०. एदम्हादो देसघादिकरणादो उवरि संखेज्जेसु ठिदिबंधसहस्सेसु एदेणप्पाबहुअविहिणा गदेसु तम्हि अवत्थंतरे अंतरकरणं कादुमाढवेदि त्ति भणिदं होइ । संपहि
* सब अक्षपक और अनुपशामक जीव इन कर्मोंके सर्वघाती अनुभागको बाँधते हैं।
$ १३८. संसार अवस्था में सर्वत्र क्षपकश्रेणि और उपशमश्रेणीमें देशघातीकरणके पूर्व सब जीव विवक्षित कर्मोंके सर्वघाति ही अनुभागको बाँधते हैं यह उक्त कथनका तात्पर्य है । अब इन कर्मोके देशघातिकरणके अन्तिम समयमें स्थितिबन्ध किस प्रकार होता है ऐसी आशंका होनेपर इस सूत्रको कहते हैं
- * इन कर्मोंके देशघाति हो जानेपर भी मोहनीयकर्मका स्थितिबन्ध सबसे थोड़ा होता है। उससे ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तरायकर्मका स्थितिबन्ध असंख्यातगुणा होता है । उससे नामकर्म और गोत्रकर्मका स्थितिबन्ध असंख्यातगुणा होता है। उससे वेदनीयकर्मका स्थितिबन्ध विशेष अधिक होता है ।
5 १३९. यह अल्पबहुत्व सुगम है, क्योंकि इन कर्मोंके देशघाति हो जानेपर भी पूर्वोक्त ही अल्पबहत्वका प्रकार है. यहाँ प्रकारान्तर नहीं है यह इस कथनका फल है। अब इसके आगे किये जानेवाले कार्यभेदका कथन करनेके लिए आगेके सूत्रप्रबन्धको कहते हैं
* पश्चात् देशघाति करनेके बाद संख्यात हजार स्थितिबन्धोंके व्यतीत होनेपर अन्तरकरण करता है।
१४०. इस देशघातिकरणके बाद इस अल्पबहुत्वविधिसे संख्यात हजार स्थितिबन्धोंके व्यतीत होनेपर उस अवस्थामें अन्तरकरण करनेके लिए आरम्भ करता है यह उक्त कथनका