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गाथा १२३] चरित्तमोहणीय उवसामणाए करणकज्जणिदेसो २५१
* तदो संखेज्जेसु हिदिबंधेसु गदेसु चक्खुदंसणावरणीयं बंधेण देसघादि करेदि ।
१३५. सुगमं ।
* तदो संखेजसु हिदिबंधेसु गदेसु आभिणियोहियणाणावरणीयं परिभोगंतराइयं च बंधेण देसघादि करेदि ।
१३६. सुगमं ।
* तदो संखेज सु हिदिबधेसु गदेसु वीरियंतराइयौं बंधेण देसघादि करेदि ।
६ १३७. कुदो एवमेदेसि देसवादिकरणस्स कमणियमो त्ति असंकणिज्जं, अणंतगुणहीणाहियसत्तीणं कम्माणमक्कमेण देसघादिकरणाणुववत्तीदो। चदुसंजलण-पुरिसवेदाणमणुभागबंधस्स देसघादिकरणमेत्थ किण्ण परूविदं ? ण, तेसिमणुभागबंधस्स पुव्वमेव संजदासंजदप्पहुडि देसघादिविट्ठाणसरूवेण षयट्टमाणस्स एदम्मि विसये देसघादित्तं पडि विसंवादाणुवलंभादो ।
* तत्पश्चात् संख्यात स्थितिबन्धोंके व्यतीत होनेपर चक्षुदर्शनावरणीयको बन्धकी अपेक्षा देशघाति करता है।
६१३५. यह सूत्र सुगम है ।
* तत्पश्चात् संख्यात स्थितिबन्धोंके व्यतीत होनेपर आभिनिबोधिकज्ञानावरणीय और परिभोगान्तरायको बन्धकी अपेक्षा देशघाति करता है।
$ १३६. यह सूत्र सुगम है।
* तत्पश्चात् संख्यात स्थितिबन्धोंके व्यतीत होनेपर वीर्यान्तरायकर्मको बंधकी अपेक्षा देशघाति करता है।
६९३७. शंका-इनके इस प्रकार देशघातिकरणका क्रमनियम किस कारणसे
समाधान-ऐसी आशंका नहीं करनी चाहिये, क्योंकि जो कर्म अनन्तगुणी हीन शक्तिवाले हैं और जो कर्म अनन्तगुणी अधिक शक्तिवाले हैं उनका युगपात् देशघातिकरण नहीं बन सकता।
शंका-चार संज्वलन और पुरुषवेदके अनुभागबन्धका यहाँपर देशघातिकरण क्यों नहीं कहा?
समाधान-नहीं, क्योंकि उनका अनुभागबन्ध पहले ही संयतासंयत गुणस्थानसे लेकर देशघाति द्विस्थानस्वरूपसे प्रवर्तमान है, अतः इस स्थलपर उनके देशघातिपनेके प्रति विसंवाद उपलब्ध नहीं होता ।