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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ संजमलद्धी
उक्क० अनंतगु० । तं कस्स १ सव्वविसुद्ध ० सुहुमखवग० चरिमसमए भवदि । वीययस अजहण्णमणुक० अनंतगु० । कसायाभावादो एयवियप्पं चैव । तं पुण उवसंत०-खीणकसाय-सजोगि - अजोगीणं घेत्तव्वं । एवमेदीए संदिट्ठीए जणिदपडिबोहाणं सिस्साणमिदाणि तिव्वमंददा विसयमध्याबहुअं सुत्ताणुसारेण वसइस्सामो । तं जहा - * तिव्वमंददाए सव्वमंदाणुभागं मिच्छत्तं गच्छमाणस्स जहण्णयं संजमट्ठाणं ।
४८. कुदो ? सव्वुक्कस्ससंकिलेसेण मिच्छत्तं गच्छमाणस्स चरिमसमए एदस्स दो ।
* तस्सेवुक्कस्सयं संजमट्ठाणमणंतगुणं ।
$ ४९. कुदो ? तपाओग्गसंकिलेसेण मिच्छत्तपडिवादाहिमुहस्स चरिमसमये पुविल्लादो असंखेखलोगमेत्तछाणाणि समुल्लंघियूणेदस्स समुप्पत्तिदंसणादो ।
* असंजदसम्मत्तं गच्छमाणस्स जहण्णयं संजमट्ठाणमणंतगुणं ।
५०. कुदो ? पुव्विल्लादो असंखेजलो गमेत्तछट्टाणाणि अंतरियूणेदस्स सम्मुप्पण्णत्तादो । पुव्विल्लुकस्सट्ठाणादो कथमेदस्स जहण्णलद्धिद्वाणस्साणंतगुणत्तसंभवोचि
गुणा है । वह किसके होता है ? सर्वविशुद्ध सूक्ष्मसाम्परायशुद्धिसंयत क्षपक के अन्तिम समय में होता है। उससे वीतरागका अजघन्य - अनुत्कृष्ट स्थान अनन्तगणा है । वह कषायके अभाव के कारण एक ही प्रकारका है । परन्तु वह उपशान्तकषाय, क्षीणकषाय, सयोगी जिन और अयोगी जिनका ग्रहण करना चाहिए। इस प्रकार इस संदृष्टि द्वारा जिनको प्रतिबोध हुआ है ऐसे शिष्योंको इस समय तीव्र-मन्दताविषयक अल्पबहुत्वको सूत्रके अनुसार बतलावेंगे । यथा—
* तीव्र - मन्दताकी अपेक्षा मिथ्यात्वको प्राप्त करनेवाले संयतके जघन्य संयमस्थान सबसे मन्द अनुभागवाला होता है ।
$ ४८. क्योंकि सबसे उत्कृष्ट संक्लेशके साथ मिथ्यात्वको प्राप्त होनेवाले संयतके अन्तिम समय में इसका ग्रहण किया है ।
* उससे उसीके उत्कृष्ट संयमस्थान अनन्तगुणा है ।
$ ४९. क्योंकि तत्प्रायोग्य संक्लेशसे मिध्यात्वमें गिरनेके सन्मुख हुए संयतके अन्तिम समय में पूर्व के संयमस्थानसे असंख्यात लोक प्रमाण षटूस्थानोंको उल्लंघन कर इसकी उत्पत्ति देखी जाती है ।
* उससे असंयत सम्यक्त्वको प्राप्त होनेवाले संयतके जघन्य संयमस्थान अनन्तगुणा है ।
५०. क्योंकि पूर्वके संयमस्थानसे असंख्यात लोकप्रमाण षट्स्थानोंको उल्लंघन कर यह स्थान उत्पन्न हुआ है ।