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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [संजमासंजमलद्धी संजदस्स जहण्णयं पडिवज्जमाणट्ठाणं होदि । तत्तो परमसंखेज्जलोगमेत्तद्धाणं गंत्तण तिरिक्खसंजदासंजदस्स जहण्णयं पडिवज्जमाणट्ठाणं होइ । तत्तो प्पहुडि दोण्हं पि साहारणभावेण असंखेज्जलोगमेत्तद्धाणमुवरि गंतूण तम्मि उद्दे से तिरिक्खसंजदासंजदस्स उक्कस्सयं पडिवज्जमाणट्ठाणं परिहायदि । तत्तो उवरि वि असंखेज्जलोगमेत्तद्धाणं गंतूण मणुस्सस्स उकस्सयं पडिवज्जमाणं थकदि । तत्तो परमसंखेज्जलोगमेत्तमंतरं होदूण पुणो मणुससंजदासंजदस्स जहण्णयमप्पडिवादापडिवज्ज माणट्ठाणाणि होति । तदो असंखेज्जलोगमेत्तद्धाणमुवरि गंतूण तिरिक्खसंजदासंजदस्स अपडिवादअपडिवज्जमाणजहण्णट्ठाणं होइ । तदो दोण्हं पि साहारणभूदाणि असंखेज्जलोगमेत्तट्ठाणाणि उवरि गंतूण तिरिक्खसंजदासंजदस्स उक्कस्सअवडिवादअपडिवज्जमाणट्ठाणमुल्लंघियूण तत्तो पुणो वि असंखेज्जलोगमेत्तछट्ठाणाणि उवरि गंतूण मणुससंजदासंजदस्स उक्कस्सयं अपडिवादअपडिवज्जमाणट्ठाणं समुप्पज्जइ । एत्थ पडिवोदट्ठाणाणि तिरिक्खमणुससंजदासजदाणं हेडिमगुणहाणाणि पडिवज्जमाणाणं चरिमसमए घेत्तव्याणि । पडिबज्जमाणट्ठाणाणि तिरिक्ख-मणुस्साणं संजमासंजमग्गहणपढमसमए दहव्वाणि । पुणो पढमसमयं चरिमसमयं च मोत्तूण सेसासेसमज्झिमावत्थाए पाओग्गाणि हाणाणि सत्थाणपडिबद्धाणि उवरिमगुणटाणाहिमुहाणि च अपडिवादअपडिवज्जमाणट्ठाणाणि णाम वुच्चंति। संपहि एदेसिं तिविहाणं पि लट्ठिाणाणं सुहावबोहणट्टमेसा संदिट्ठी
प्रमाण अन्तर होकर पुनः मनुष्य संयतासंयतका जघन्य प्रतिपद्यमान स्थान होता है। तत्पश्चात् असंख्यात लोकप्रमाण स्थान जाकर तिर्यञ्च संयतासंयतका जघन्य प्रतिपद्यमान स्थान होता है । वहाँसे लेकर दोनोंके ही समानरूपसे असंख्यात लोकप्रमाण स्थान ऊपर जाकर वहाँ तिर्यञ्च संयतासंयतके उत्कृष्ट प्रतिपद्यमान स्थानकी व्युच्छित्ति हो जाती है । उससे ऊपर भी असंख्यात लोकप्रमाण स्थान जाकर मनुष्यका उत्कृष्ट प्रतिपद्यमानस्थान विच्छिन्न हो जाता है। तत्पश्चात असंख्यात लोकप्रमाण अन्तर होकर पुनः मनुष्य संयता संयतके जघन्य अप्रतिपात-अप्रतिपद्यमानस्थान होते हैं। उसके बाद असंख्यात लोकप्रमाण स्थान ऊपर जाकर तिर्यञ्च संयतासंयतके अप्रतिपात-अप्रतिपद्यमानस्थान होता है। तत्पश्चात् दोनोंके ही साधारण असंख्यात लोकप्रमाण स्थान ऊपर जाकर तिर्यञ्चसंयतासंयतके उत्कृष्ट अप्रतिपात-अप्रतिपद्यमानस्थानको उल्लंघन कर तत्पश्चात् फिर भी असंख्यात लोकप्रमाण षट्स्थान ऊपर जाकर मनुष्यसंयतासंयतका उत्कृष्ट अप्रतिपात-अप्रतिपद्यमान स्थान उत्पन्न होता है। यहाँ पर प्रतिपातस्थान अधस्तन गुणस्थानोंको प्राप्त होनेवाले तिर्यञ्च और मनुष्योंके अन्तिम समयके लेने चाहिए। प्रतिपद्यमानस्थान तिर्यञ्च और मनुष्योंके संयमासंयमको ग्रहण करने के प्रथम समयके जानने चाहिए, पुनः प्रथम समय और अन्तिम समयको छोड़कर, शेष समस्त मध्यम अवस्थाके योग्य स्वस्थानसम्बन्धी और उपरिम गुणस्थानके अभिमुख हुए स्थान अप्रतिपात-अप्रतिपद्यमान स्थान कहलाते हैं। अब इन तीनों प्रकारके लब्धिस्थानोंका सुखपूर्वक ज्ञान करानेके लिये यह संदृष्टि है