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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ संजमासंजमलद्धी
* अणुभागखंडयसहस्सेसु गदेसु ट्ठिदिखंडयउक्कीरणकालो हिदिबंधकालो च अण्णो च अणुभागखंडयउक्कीरणकालो समगं समत्ता भवंति । $ ३०. संखेज्जसहस्समेत्तेसु अणुभागखंडएस गदेसु तदित्थाणुभागखंडयुक्कीरणकालो पढमट्ठिदिखंडयतब्बंधगद्धाओ च जुगवमेव परिसमत्ताओ त्ति भणिदं होदि । * तदो अण्णं ट्ठिदिखंडयं पलिदोवमस्स संखेज भागिगं अण्णं द्विदिबंध - मण्णमणुभागखंडयं च पट्ठवेइ ।
३१. अपुव्वकरणपढमसमयाढत्तट्ठिदिखंडयट्ठिदिबंधेसु अणुभागखंडय सहस्सगभणेपिट्ठि संते तदो विदियट्ठिदिखंडयट्ठिदिबंधेहि सह अण्णमणुभागखंडयं तदित्थमाढवेदिति भणिदं होइ ।
* एवं द्विदिखंडयसहस्सेसु गदेसु अपुव्वकरणद्धा समत्ता भवदि । $ ३२. एवमेदेण कमेण ट्ठिदिखंडय सहस्सेसु अण्णोष्णं पेक्खियूण विसेसहीणायामेसु अनंतराणंतरादो विसेसहीणु कीरणद्धापडिबद्धेसु ट्ठिदिबंधोसरण सहस्ससह गदेसु पादेकमणुभागखंडय सहस्साविणाभावी गदेसु अपुव्वकरणद्धाए पज्जवसाणमेसो पत्तो ति भणिदं होदि ।
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* हजारों अनुभागकाण्डकोंके व्यतीत होनेपर स्थितिकाण्डक - उत्कीरणकाल, स्थितिबन्धकाल और अन्य अनुभागकाण्डक उत्कीरणकाल ये तीनों एक साथ समाप्त होते हैं ।
३०. संख्यात हजार अनुभागकाण्डकोंके व्यतीत होने पर वहाँ सम्बन्धी अनुभाग काण्डक - उत्कीरणकाल तथा प्रथम स्थितिकाण्डक और स्थितिबन्धकाल एकसाथ ही समाप्त होते हैं यह उक्त कथनका तात्पर्य हैं ।
* तत्पश्चात् पल्योपमके संख्यातवें भागप्रमाण अन्य स्थितिकाण्डकको, अन्य स्थितिबन्धको और अनुभागकाण्डकको प्रारम्भ करता है ।
$ ३१. अपूर्वकरणके प्रथम समय में प्रारम्भ किये गये हजारों अनुभागकाण्डक के अविनाभावी स्थितिकाण्डक और स्थितिबन्ध के समाप्त होने पर तदनन्तर दूसरे स्थितिकाण्डक और स्थितिबन्धके साथ वहाँ सम्बन्धी अन्य अनुभागकाण्डकको आरम्भ करता है यह उक्त कथनका तात्पर्य है ।
* इस प्रकार हजारों स्थितिकाण्डकोंके व्यतीत होने पर अपूर्वकरणका काल समाप्त होता है ।
$ ३२. इस प्रकार इस क्रमसे एक-दूसरेको देखते हुए विशेष हीन आयामबाले और उत्तरोत्तर विशेषहीन उत्कीरण कालसे प्रतिबद्ध तथा प्रत्येक हजारों अनुभागकाण्डकोंके अविनाभावी ऐसे हजारों स्थितिकाण्डकोंके और हजारों स्थितिबन्धापसरणोंके जाने पर यह जीव अपूर्वकरण अन्तको प्राप्त हुआ यह उक्त कथनका तात्पर्य है ।