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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ संजमासं जमलद्धी * अपुव्वकरणस्स पढमसमए द्विदिखंडयं जहण्णयं पलिदोवमस्स संखेज्जदिभागो | उक्कस्सयं ट्ठिदिखंडयं सागरोवमपुधत्तं ।
$ २५. एत्थ ताव पुव्वमेवापुव्यकरणस्स लक्खणमणुगंतव्वं । तं च दंसणमोहोवसामणा पवंचिदमिदि ण पुणो पवंचिज्जदे । णवरि तत्थतणपरिणामेहिंतो एत्थतणपरिणामाणमणंतगुणत्तं देसचारित्तलद्विपा हम्मे णाणु गंतव्वं । तदो पढमसमयापुव्वकरणे ट्ठिदिखंडय पमाणावहारणट्ठमिदं सुत्तमोइण्णं - ' तत्थ जहण्णयं द्विदिखंडयं पलिदोवमस्स संखेजदिभागो', तप्पा ओग्गजहण्णट्ठिदिसंतकम्मेणुवद्विदम्मि' तदुवलंभादो 'उक्कस्सयं पुण सागरोवमयुधत्तमेत्तं' तप्पाओग्गडिदिसंतबुद्धि काढूण उकरसभावाविरोहेणापुण्यकरण पढमसमए वट्टमाणम्मि तदुवलंभादो ।
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$ २६. एवम पुव्यकरण पढमसमयविसयाणं जहण्णुकस्सट्ठिदिखंडयाणं पमाणविणिण्णयं काढूण संपहि तत्थेवाणुभागखंडयपमाणावहारणमिदमाह -
* अपूर्वकरण के प्रथम समयमें जघन्य स्थितिकाण्डक पल्योपमके संख्यातवें भागप्रमाण होता है और उत्कृष्ट स्थितिकाण्डक सागरोपमपृथक्त्वप्रमाण होता है ।
$ २५. सर्व प्रथम यहाँपर अपूर्वकरणका लक्षण जान लेना चाहिए और उसका दर्शनमोहोपशामना अनुयोगद्वार में विस्तारसे कथन कर आये हैं, इसलिये पुनः कथन नहीं करते । इतनी विशेषता है कि देशचारित्रलब्धिकी प्रधानता से वहाँके परिणामोंसे यह के परिणाम अनन्तगुणे जानने चाहिए । इसलिये अपूर्वकरणके प्रथम समय में स्थितिकाण्ड के प्रमाणका निश्चय करनेके लिये यह सूत्र आया है--' वहाँ जघन्य स्थितिकाण्डक पल्योपस के संख्यातवें भागप्रमाण है, क्योंकि तत्प्रायोग्य जघन्य स्थितिसत्कर्मके साथ उपस्थित हुए जीवके उसकी उपलब्धि होती है । परन्तु उत्कृष्ट स्थितिकाण्डक सागरोपमपृथक्त्व प्र है, क्योंकि तत्प्रायोग्य स्थितिसत्कर्मकी वृद्धि करके उत्कृष्टभावके अविरोधके साथ अ करणके प्रथम समय में उपस्थित होनेपर उसकी उपलब्धि होती है ।
विशेषार्थ —जीब दो प्रकारके होते हैं- -- एक क्षपितकर्माशिक जीव और दूसरे गुणितकर्माशिक जीव । यदि क्षपितकर्माशिक जीव अपूर्वकरणके प्रथम समयको प्राप्त हुआ है तो उसके स्थितिकाण्डक नियमसे जघन्य होगा और वह पल्योपमके संख्यातवें भागप्रमाग होगा | और यदि गुणकर्माशिक जीव अपूर्वकरणके प्रथम समयको प्राप्त हुआ है तो उसके स्थितिकाण्डक नियम से उत्कृष्ट होगा और वह सागरोपमपृथक्त्व प्रमाण होगा । मध्य में ह अनेक प्रकारका होगा ।
२६. इस प्रकार अपूर्वकरणके प्रथम समयसम्बन्धी जघन्य और उत्कृष्ट - arussia प्रमाणका निर्णय कर अब वहोंपर अनुभागकाण्डकके प्रमाणका निश्चय करनेके लिये इस सूत्र को कहते हैं
१. ता० प्रती - कमेम्सुवढिदम्मि इति पाठः ।