________________
गाथा ११५] एत्थतणगाहाए परिभासत्थपरूवणा
११३ * एदस्स अणिओगद्दारस्स पुव्वं गमणिजा परिभासा।
$ ९. एदस्स पयदाणिओगद्दारस्स परिभासा ताव पुव्वमणुगंतव्वा त्ति भणिदं होइ । का परिभासा णाम ? सुत्तसूचिदत्थस्स सुत्तणिबद्धस्साणिबद्धस्स च परूवणा परिभासा णाम । गाहासुत्तस्स अवयवत्थपरूवणमुज्झियूण सुत्तसूचिदासेसत्थस्स वित्थरपरूवणा सुत्तपरिभासा त्ति वुत्तं होइ। तमिदाणिं वत्तइस्सामो त्ति पइण्णाय तव्विसयमेव पुच्छावकमाह
* तं जहा।
१०. सुगमं ।
* एत्थ अधापवत्तकरणद्धा अपुवकरणद्धा च अत्थि, अणियट्टिकरणं णत्थि ।
5 ११. एतदुक्तं भवति–उवसमसम्मत्तेण सह संजमासंजमं पडिवजमाणस्स तिण्हं पि करणाणं संभवो अस्थि । सो वुण एत्थ णाहिकओ, तस्स सम्मत्तुप्पत्तीए
व अंतब्भावादो। तदो तं मोत्तण वेदयसम्माइट्ठिस्स वेदगपाओग्गमिच्छाइट्ठिस्स वा संजमासंजमं पडिवजमाणस्स परूवणं वत्तइस्सामो। तत्थ दोण्णि चेव करणाणि
* इस अनुयोगद्वारकी सर्व प्रथम परिभाषा जाननी चाहिए ।
६९. इस प्रकृत अनुयोगद्वारकी सर्वप्रथम परिभाषा जाननी चाहिए यह उक्त कथनका तात्पर्य है।
शंका-परिभाषा किसका नाम है ?
समाधान-सूत्रके द्वारा सूचित हुए अर्थकी तथा सूत्रमें निबद्ध हुए या निबद्ध नहीं हुए अर्थकी प्ररूपणा करना परिभाषा है। गाथासूत्रके अवयवार्थकी प्ररूपणाको छोड़कर सूत्र द्वारा सूचित हुए अशेष अर्थकी विस्तारसे प्ररूपणा करना सूत्र-परिभाषा है यह उक्त कथनका तात्पर्य है।
उसे इस समय बतलाते हैं ऐसी प्रतिज्ञा करके तद्विषयक ही पृच्छावाक्य को कहते हैं* वह जैसे । ६ १०. यह सूत्र सुगम है।
* इस अनुयोगद्वारमें अधःप्रवृत्तकरणकाल और अपूर्वकरणकाल है, अनिवृत्तिकरण नहीं है।
११. उक्त कथनका यह तात्पर्य है-उपशमसम्यक्त्वके साथ संयमासंयमको प्राप्त होनेवाले जीवके तीनों ही करण सम्भव है। परन्तु वह यहाँ पर अधिकृत नहीं है, क्योंकि उसका सम्यक्त्वकी उत्पत्तिमें ही अन्तर्भाव हो जाता है। इसलिये उसे छोड़कर संयमासंयमको प्राप्त होनेवाले वेदकसम्यग्दृष्टिकी अथवा वेदकप्रायोग्य मिथ्यादृष्टि जीवकी प्ररूपणाको