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जयधवलास हिदे कसायपाहुडे
[ संजमा संजमलद्धी
मज्झे बारसमं संजमा संजमलद्धिपरूवणादो पडिलद्धतव्ववएसं, तत्थ पडिबद्धा एका चैव सुतगाहा तमिदाणि विहासयिस्सामो त्ति भणिदं होदि । संपहि का सा एक्का गाहा ति आसंकाए पुच्छावकमाह
* तं जहा ।
$ २ सुगममेदं पुच्छावकं । एवं च पुच्छाविसईकयस्स गाहासुत्तस्स सरूवणिसो कीरदे
(६२) लद्धी य संजमासंजमस्स लद्धी तहा चरित्तस्स ।
वढावढी उवसामणा य तह पुव्वबद्धाणं ॥ ११५ ॥
९३. एसा गाहा दोसु अत्थाहियारेसु पडिबद्धा, संजमा संजमलद्धीए संजम - लद्धीए च परिप्फुडमेदिस्से णिबद्धत्तदंसणादो दोसु वि एक्का गाहा त्ति संबंधगाहा - वयवेण तहोवइट्ठत्तादो च । एवं च संते देसविरदि ति अणियोगद्दारे एसा गाहा पडिबद्धा त्ति कधमेदं घडदे ? दोसु पडिवद्धाए एगत्थ पडिबद्धत्तविरोहादो त ? सच्चमेदं, किंतु दोन्हमक्कमेण परूवणोवायाभावादो देसविरदि ति अणिओगद्दारे बिभागमस्सियूण ताव परूवणं कस्सामो त्ति जाणावणट्टमेवं भणिदं ।
कषायप्राभृतके पन्द्रह अर्थाधिकारोंके मध्य देशविरति नामका बारहवाँ अर्थाधिकार है, उसकी प्ररूपणा में एक ही सूत्रगाथा आई है। उसका इस समय व्याख्यान करेंगे यह उक्त कथनका तात्पर्य है । अब वह एक गाथा कौनसी है ऐसी आशंका होने पर पृच्छावाक्यको कहते हैं
* वह जैसे ।
६. २. यह पृच्छावाक्य सुगम है । इस प्रकार पृच्छाके विषयभावको प्राप्त गाथासूत्र के स्वरूपका निर्देश करते हैं
संयमासंयमकी लब्धि चारित्र अर्थात् सकलसंयमकी लब्धि उत्तरोत्तर वृद्धि अथवा वृद्धि हानि और पूर्वबद्ध कर्मोंकी उपशामना प्रकृतमें जानने योग्य हैं ॥ ११५ ॥
$ ३. यह सूत्रगाथा दो अर्थाधिकारोंमें प्रतिबद्ध है, क्योंकि संयमासंयमलब्धि और संयमलब्धि अर्थाधिकारों में यह निबद्धरूपसे देखी जाती है और दोनों ही अर्थाधिकारोंमें एक ही सूत्रगाथा सम्बन्ध गाथावयव होनेसे उस प्रकार से उपदिष्ट की गई है।
शंका- ऐसा होने पर देशविरति इस अनुयोगद्वार में यह गाथा प्रतिबद्ध है यह कथन कैसे बन सकता है, क्योंकि जो दो अर्थाधिकारोंमें प्रतिबद्ध है उसका एक अर्थाधिकारमें प्रतिबद्ध नेका विरोध है 1
समाधान - यह कहना सत्य है, किन्तु दोनों अर्थाधिकारोंके युगपत् प्ररूपण करनेका कोई उपाय नहीं है, इसलिये देशविरति इस अनुयोगद्वार में जो भाग प्रतिबद्ध है उसका आश्रयकर सर्वप्रथम कथन करेंगे इस बातका ज्ञान करानेके लिये इस प्रकार कहा है ।