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गाथा ११४ ]
कदकर णिज्जस्स कज्ज विसेसपरूवणा
$ ११२. कदकरणिजजादपढमसमए चैव जइ कालं करेइ तो णियमा देवगदीए चैव समुपज्जदि, णाण्णगदीसु त्ति भणिदं होदि । कुदो एस नियमो चे ? सेस इसमुप्पत्तिणिबंधणलेस्सापरावतीए तत्थासंभवादो | एवं विदियादिसमयकदकरणिजस्स वि देवेसु चेष्पादनियमो अणुगंतव्यो जाव तप्पा ओग्गंतो मुहुत्तकालचरिमसमओ ति । तत्तो उवरि कालं करेमाणो कदकरणिजो सेसगदीसु वि पुव्वा उगबंधवसेण उपपत्तिपाओग्गो होदित्ति जाणावणट्ठमुत्तरमुत्तमोइण्णं-
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* जइ रइएसु वा तिरिक्खजोणिएसु वा मणुसेसु वा उववज्जदि, णियमा अंतो मुहुत्तकदकरणिजो ।
$ ११३. कुदो १ तत्थुपत्तिणिबंधणसंकिलेसाहिसंबंधस्स लेस्सापरावतीए च तेत्तियमेत्तकालेण विणा संभवाभावादो ।
* कृतकृत्य जीव यदि प्रथम समय में मरता है तो नियमसे देवोंमें उत्पन्न होता है।
$ ११२. कृतकृत्य होनेके प्रथम समय में ही यदि मरण करता है तो नियमसे देवगति में ही उत्पन्न होता है, अन्य गतियों में नहीं यह उक्त कथनका तात्पर्य है ।
शंका- यह नियम किस कारण से है ?
समाधान — क्योंकि वहाँपर शेष गतियों में उत्पत्तिका कारणभूत लेश्यापरिवर्तनका होना असम्भव है ।
इसी प्रकार कृतकृत्य जीवके तत्प्रायोग्य अन्तर्मुहूत प्रमाण कालके अन्तिम समयतक द्वितीयादि समयों में भी देवोंमें हो उत्पत्तिका नियम जानना चाहिए। उसके बाद मरण करनेवाला कृतकृत्य जीव शेष गतियों में भी पहले बाँधी गई आयुके कारण उत्पत्तिके योग्य होता है इस बातका ज्ञान करानेके लिये आगेका सूत्र आया है
* यदि नारकियोंमें, तिर्यञ्चयोनियों में और मनुष्यों में उत्पन्न होता है तो नियमसे कृतकृत्य होनेके अन्तर्मुहूर्तकाल बाद ही उत्पन्न होता है ।
$ ११३. क्योंकि उन गतियोंमें उत्पत्तिके कारणरूप संक्लेश और लेश्यापरावर्तनकी ना काल गये बिना उत्पत्ति नहीं पाई जाती ।
विशेषार्थ – यहाँ कृतकृत्यभावसे युक्त उक्त जीव मरकर कब किस गति में उत्पन्न हो इस प्रसंगसे जिन तथ्योंपर प्रकाश डाला गया है वे हृदयंगम करने लायक है । प्रश्न यह है कि कृतकृत्य होनेके प्रथम समय में यदि मरता है तो देवोंमें ही क्यों उत्पन्न होता है ? इस प्रश्नका समाधान करते हुए देवायुके उदयका उल्लेख न कर वहाँ टीका बतलाया है कि उस समय मरकर यह जीव अन्य गतियोंमें उत्पन्न हो, उसके परिवर्तन होकर इस प्रकारकी लेश्या नहीं पाई जाती । इस समय उक्त जीवके देवायुका उदय नहीं