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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [दसणमोहक्खवणा कदकरणिज्जस्स पढमसमए चेव लेस्सापरावत्ती होदि त्ति ण एवमेत्थ घेत्तव्वं । किंतु लेस्सापरावत्तीए एत्थ अहिमुहो होदूण पुणो अंतोमुहुत्तेण णिरुद्धलेस्सादो लेम्संतरं परिणामेदि त्ति घेत्तव्वं । एदस्स च णिबंधणमुवरि चुण्णिसुत्तयारो सयमेव भणिहिदि । संपहि अंतोमुहुत्तकदकरणिज्जो होदूण लेस्संतरमेसो परिणममाणो किमविसेसेण सव्वासु सुहासुहलेस्सासु परिणमइ, आहो अस्थि को विसेसो त्ति आसंकाए णिण्णयकरणमुत्तरसुत्तावयारो
* काउ-तेउ-पम्म-सुक्कलेस्साणमण्णवरो ।
$१०७. जहण्णकाउ-तेउ-पम्म-सुक्कलेस्साणमण्णदराए पुव्वावद्विदलेस्सापरिचागेणंतोमुहुत्तकदकरणिज्जो परिणमदि त्ति भणिदं होइ । एदेण किण्ह-णीललेस्साणमच्चंताभावो एत्थ पदुप्पाइदो दट्टव्वो, सुट्ठ वि संकिलिट्ठस्स कदकरणिज्जस्स सगकालभंतरे जहण्णकाउलेस्साणइकमादो। संपहि एदस्स कदकरणिज्जस्स द्विदिखंडयघादादिविरहियस्स सम्मत्ताणुभागमणुसमयमणंतगुणहाणीए पुव्वपओगेणोहट्टमाणस्स सगकालब्भंतरे उदीरणागयविसेसपदुप्पायणमुत्तरसुत्तारंभो
___ * उदीरणा पुण संकिलिट्ठस्सदु वा विसुज्झदु वा तो वि असंखेजसमयपबद्धा असंखेजगुणाए सेढीए जाव समयाहिया आवलिया सेसा त्ति । करता है यह उक्त कथनका तात्पर्य है। कृतकृत्य सम्यग्दृष्टि जीवके पहले समयमें ही लेश्या परिवर्तन होता है इस प्रकार यहाँ नहीं ग्रहण करना चाहिए। किन्तु यहाँपर लेश्यापरिवर्तनके अभिमुख होकर पुनः अन्तमुहूते कालद्वारा विवक्षित लेश्यासे दसरी लेश्याको परिणमाता है ऐसा यहाँ ग्रहण करना चाहिए और इसका कारण आगे चूर्णिसूत्रकार स्वयं ही कहेंगे । अब अन्तर्मुहूर्त काल तक कृतकृत्य होकर दूसरी लेश्याको परिणमाता हुआ यह क्या अविशेष रूपसे सभी शुभाशुभ लेश्यारूप परिषमता है या कोई विशेषता है ऐसी आशंका होनेपर निर्णय करनेके लिये आगेके सूत्रका अवतार करते हैं
* कापोत, तेज. पन और शुक्ल लेश्याओंमेसे अन्यतर लेश्यापरिणाम होता है।
$ १०७. अन्तर्मुहूर्तकालके बाद कृतकृत्य सम्यग्दृष्टि जीव पहलेको अवस्थित लेश्याका परित्यागकर जघन्य कापोत, तेज, पद्म और शुक्ल इनमेंसे अन्यतर लेश्यारूपसे परिणमता है यह उक्त कथनका तात्पर्य है। इस वचन द्वारा कृष्ण और नीललेश्याका यहाँ अत्यन्त अभाव कहा गया जानना चाहिए, क्योंकि अत्यन्त संक्लिष्ट हुआ भी कृतकृत्य जीव अपने कालके भीतर जघन्य कापोत लेश्याका अतिक्रम नहीं करता । अब स्थितिकाण्डकघात आदिसे रहित तथा सम्यक्त्वके अनुभागका पूर्व प्रयोगवश प्रत्येक समयमें अनन्तगुणी हानिरूपसे अपवर्तन करनेवाले इस कृतकृत्य जीवके अपने कालके भीतर उदीरणागत विशेषताका कथन करनेके लिये आगेके सूत्रका आरम्भ करते हैं
* उक्त जीव चाहे संक्लेशको प्राप्त हो चाहे विशुद्धिको प्राप्त हो तो भी उसके
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