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गाथा ११४]
अणियष्टिकरणे कज्जविसेसरूवणाप द्विदिखंडयचरिमसमओ त्ति । तत्तो पुण परिमडिदिखंडए वट्टमाणस्स अण्णारिसी परूवणा होदि ति एसो एदस्स सुत्तस्स भावत्थो । एवमेत्तिएण पबंधेण हेडिमपरूवणमुवसंहरिय संपहि चरिमविदिखंडयविसयं परूवणं कुणमाणो तत्थ ताव चरिमट्ठिदिखंडयमाहप्पजाणावणट्ठमुवरिमप्पाबहुअपपंधमाह
* सम्मत्तस्स चरिमट्ठिदिखंडए णिढिदे जाओ द्विदीओ सम्मत्तस्स सेसाओ ताओ हिदीओ थोवाओ ।
९२. एदेण सम्मत्तस्स चरिमडिदिखंडयं गेण्हमाणो उदयावलियबाहिरं सव्वमेव णो गेण्हइ, किंतु अंतोमुहु समेत्तीओ द्विदीओ कदकरणिज्जकालावच्छिण्णपमाणाओ हेट्ठा मोत्तूण पुणो उवरिमासेसद्विदीओ गेण्हदि ति जाणाविदं । एदाओ च द्विदीओ उव्वराविज्जमाणाओ थोवाओ, उपरिमपदाणमेत्तो बहुत्तोवलंभादो ।
* दुचरिमहिदिखंडयं संखेजगुणं ।
६ ९३. दोण्हं पि अंतोमुहुत्तपमाणते संते वि पुम्विन्लादो एदस्स संखेज्जगुणत्तमेदम्हादो चेव सुत्तादो णिच्छेयव्वं ।
* चरिमहिदिखंडयं संखेजगुणं ।
अन्तिम समय तक ले जाना चाहिए। परन्तु उससे ऊपर अन्तिम स्थितिकाण्डकमें विद्यमान जीवके अन्य प्रकारकी प्ररूपणा होती है यह इस सूत्रका भावार्थ है। इसप्रकार इतने प्रबन्ध द्वारा अधस्तन प्ररूपणाका उपसंहार कर अब अन्तिम स्थितिकाण्डकविषयक प्ररूपणाको करते हुए वहाँ सर्वप्रथम अन्तिम स्थितिकाण्डकके माहात्म्यका ज्ञान करानेके लि अल्पबहुत्वप्रबन्धको कहते हैं
* सम्यक्त्वके अन्तिम स्थितिकाण्डकके समाप्त होनेपर सम्यक्त्वकी जो स्थितियाँ शेष रहती हैं वे स्थितियाँ सबसे स्तोक हैं।
६९२. सम्यक्त्वके अन्तिम स्थितिकाण्डकको ग्रहण करता हुआ उदयावलि बाह्य सबको ही ग्रहण नहीं करता है, किन्तु कृतकृत्यके कालप्रमाण अन्तर्मुहूर्तमात्र स्थितियोंको नीचे छोड़कर पुनः उपरिम समस्त स्थितियोंको ग्रहण करता है इस बातका इस सूत्रद्वारा ज्ञान कराया गया है । ये छोड़ी जा रही स्थितियाँ सबसे थोड़ी हैं, क्योंकि उपरिम पद इससे बहुतरूपसे पाये जाते हैं।
* उनसे द्विचरम स्थितिकाण्डक संख्यातगुणा है।
६९३. इन दोनोंके अन्तर्मुहूर्तप्रमाण होनेपर भी पिछलेसे यह संख्यातगुणा है इस बातका इसी सूत्रसे निश्चय करना चाहिए ।
* उससे अन्तिम स्थितिकाण्डक संख्यातगुणा है ।