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गाथा ६३ ]
पढमगाहासुत्तस्स अत्थपरूवणा ६६६. एवं णिरयगदीए अभिक्खमुवजोगसरूवणिरूवणं कादूण संपहि देवगदीए तप्परूवणसुवरिमं पबंधमाह___* देवगदीए लोभो माया लोभो माया त्ति वारसहस्साणि गंतूण तदो सइं माणो परिवत्तदि।
६७. तं जहा–देवगदीए लोभो माया लोभो माया त्ति एदेसिं दोण्हं कसायाणं वारसहस्साणि गंतूण तदो सइं माणकसायो परिवत्तदि । कुदो एवं ? पेजसरूवाणं लोभ-मायाणं तत्थ बहुलं संभवदंसणादो । तदो लोभ-मायाहि संखेजवारसहस्साणि गंतूण तदो लोभेण परिणमिय मायापाओग्गविसये तमुल्लंघिय सइं माणेण परिवत्तदि त्ति सिद्धं । एवमेदेण कमेण पुणो-पुणो कीरमाणे माणपरिवत्ता वि संखेजसहस्समेत्ता जादा । तदो अण्णारिसो परिवत्तो होदि ति जाणावण?माहणाम होता है। पुनः इसी क्रमसे हजारों वार क्रोध,मान पुनः क्रोध, मान इस रूप परिणाम होनेके बाद क्रोधरूप परिणाम होकर मानके स्थानमें मायारूप परिणाम होता है और इस विधिसे जब हजारों वार मायारूप परिणाम हो लेते हैं तब क्रोधरूप परिणामके बाद मान
और मायारूप परिणाम न होकर एक वार लोभरूप परिणाम होता है । नारकियोंके जीवनके अन्त तक यही क्रम चलता रहता है। यहाँ अंकसंदृष्टि द्वारा इसी तथ्यको समझाया गया है। अंकसंदष्टिमें ३ यह संख्या संख्यात हजारकी, २ यह संख्या दो वार की और १ यह संख एक वारकी सूचक है। अंकसंदृष्टिमें ० शून्यसे यह सूचित किया गया है कि जब क्रोधके बाद लोभरूप परिणाम होता है तब उस वार मायारूप परिणाम नहीं होता । यद्यपि उस वार मानरूप भी परिणाम नहीं होता। परन्तु मानके खानेमें मात्र २ यह संख्या रहनेसे यह बात सुतरां ख्यालमें आ जाती है।
$ ६६. इस प्रकार नरकगतिमें पुनः पुनः कषायोंके उपयोगस्वरूपका कथन करके अब देवगतिमें उसका कथन करनेके लिए आगेके प्रबन्धको कहते हैं
* देवगतिमें लोभ-माया पुनः लोभ-माया इस प्रकार संख्यात हजार वार जाकर तदनन्तर एक वार मानरूप परिवर्तन होता है ।
$ ६७. यथा-देवगतिमें लोभ-माया पुनः लोभ-माया इस प्रकार इन दोनों कषायोंके संख्यात हजार वारोंको प्राप्त होकर तदनन्तर एकवार मानकषायरूपसे परिवर्तन करता है ।
शंका-ऐसा किस कारणसे होता है ?
समाधान—प्रेयस्वरूप लोभ और मायाकी वहाँ बहुलतासे उत्पत्ति देखी जाती है। इसलिए लोभ और मायाके द्वारा संख्यात हजार वारोंको प्राप्त होकर उसके बाद लोभरूपसे परिणमनकर मायाके योग्य स्थानमें मायाको उल्लंघनकर एकवार मानरूपसे परिवर्तित होता है यह सिद्ध हुआ। इस प्रकार इस क्रमसे पुनः पुनः करनेपर मानके परिवर्तित वार भी संख्यात हजार हो जाते हैं । तदनन्तर अन्य प्रकारका परिवर्तनवार होता है इसका ज्ञान करानेके लिए कहते हैं
१. ता०प्रतो माणकसायो इति पाठः ।।