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(५०) पृ. सं.
पृ. सं.
उपशम करते समय मिथ्यात्वके उदयका व प्रथमोपशम सम्यक्त्वकी प्राप्ति आदि दर्शन उपशम भावका अन्त होनेपर उसके
मोहके सर्वोपशमसे होती है आदिका उदयके भजनीयपनेका पांचवीं गाथा
दसवीं गाथा द्वारा निर्देश द्वारा निर्देश
३० सम्यक्त्वकी प्रथम बार प्राप्तिके पूर्व तथा
अप्रथम लाभके पूर्व यह जीव किस-किस उपशम सम्यग्दृष्टिके मिथ्यात्व आदि तीनों
भाववाला होता है इसका ग्यारहीं गाथा कर्मोको स्थिति व अनुभाग किस प्रकार
द्वारा निर्देश का होता है इसका छठी गाथा द्वारा
मिथ्यात्व आदिके संक्रमका बारहवीं गाथा निर्देश
द्वारा निर्देश प्रकृतमें बन्ध प्रत्ययोंका सातवीं गाथा द्वारा
सम्यग्दृष्टिकी श्रद्धाका तेरहवीं गाथा द्वारा निर्देश
३११ निर्देश
मिथ्यादृष्टिकी अन्यथा श्रद्धाका चौदहवीं दर्शनमोहका अबन्धक कौन-कौन जीव है इसका आठवीं गाथा द्वारा विचार
गाथा द्वारा निर्देश दर्शन मोहका उपशम कितने काल तक होता.
सम्यग्मिथ्यादृष्टिके उपयोगोंका पन्द्रहवीं
गाथा द्वारा निर्देश है इसका तथा उसके बाद क्या होता है
उपशम सम्यग्दृष्टि आदिका आठ अनुयोग इसका नौवों गाथा द्वारा निर्देश
द्वारोके आधयसे जानने की सूचना
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