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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [सम्मत्ताणियोगहारं १० संभवादो । संपहि एदस्स अपुव्वकरणपढमाणुभागकंडयस्स माहप्पजाणावणमुत्तरपबंधमाह
* तस्स पदेसगुणहाणिहाणंतरफदयाणि थोवाणि ।
$१३०. तस्से त्ति वुत्ते अहियारवसेण अणुभागस्स गहणं कायव्वं, तदो अणुभागविसयएगपदेसगुणहाणिद्वाणंतरस्स अब्भंतरे जाणि फयाणि ताणि अभवसिद्धिएहिंतो अणंतगुणाणि सिद्धाणमणंतभागमेत्ताणि होदूण उवरि वुच्चमाणपदावेक्खाए थोवाणि त्ति वुचं होइ। ____ * अइच्छावणाफद्दयाणि अणंतगुणाणि।
5 १३१. उवरिमअणुभागफद्दयाणि ओकड्डेमाणो जत्तियाणि अणुभागफद्दयाणि जहण्णेणाइच्छाविय हेट्ठिमफद्दयसरूवेणोकड्डइ ताणि जहण्णाइच्छावणाविसयाणि अणंतगुणाणि त्ति जह वुत्तं होइ । किं कारणमेदेसिमणंतगुणत्तं जादमिदि चे ? ण, जहण्णाइच्छावणभंतरे अणंताणं पदेसगुणहाणिट्ठाणंतराणमत्थित्तोवएसादो । __*णिक्खेवफद्दयाणि अणंतगुणाणि ।।
5 १३२. एवं भणिदे कंडयस्स हेट्ठा जहण्णाइच्छावणमेत्तफहयाणि मोत्तूण सेसहेट्ठिमसव्वफद्दयाणं गहणं कायव्वं । एदाणि जहण्णाइच्छावणाफद्द एहितो अणंतगुणाणि त्ति भणिदं होइ। परिणामोंके द्वारा घाते जानेवाले अणुभागकाण्डकके शेष विकल्पोंका होना असम्भव है। अब इस अपूर्वकरणके प्रथम अनुभागकाण्डककी दीर्घताका ज्ञान करानेके लिये आगेके प्रबन्धको कहते हैं
* उसके एक प्रदेशगुणहानिस्थानान्तरके स्पर्धक सबसे स्तोक हैं।
$ १३०. सूत्रमें 'तस्स' ऐसा कहनेपर अधिकारवश अनुभागका ग्रहण करना चाहिए, अतः अनुभागविषयक एक प्रदेशगुणहानिस्थानान्तरके भीतर जो स्पर्धक हैं वे अभव्योंसे अनन्तगुणे और सिद्धोंके अनन्तवें भागप्रमाण होकर आगे कहे जानेवाले पदोंकी अपेक्षा स्तोक हैं यह उक्त कथनका तात्पर्य है।
* उनसे अतिस्थापनारूप स्पर्धक अनन्तगुणे हैं।
$ १३१. उपरिम अनुभागसम्बन्धी स्पर्धकोंका अपकर्षण करते हुए जितने अनुभागस्पर्धकोंको जघन्यरूपसे अतिस्थापितकर उनसे नीचेके स्पर्धकरूपसे अपकर्षित करता है वे जघन्य अतिस्थापनाविषयक स्पर्धक एक प्रदेशगुणहानिस्थानान्तरके स्पर्धकोंसे अनन्तगुणे होते हैं यह पूर्वोक्त कथनका तात्पर्य है।
शंका--ये अनन्तगुणे किस कारणसे हो जाते हैं ?
समाधान--नहीं, क्योंकि जघन्य अतिस्थापनाके भीतर अनन्त प्रदेशगुणहानिस्थानान्तरोंके अस्तित्वका उपदेश पाया जाता है।
* उनसे निक्षेपसम्बन्धी स्पर्धक अनन्तगुणे होते हैं। $ १३२. ऐसा कहनेपर अनुभागकाण्डकके नीचे जघन्य अतिस्थापनाप्रमाण स्पर्धकोंको