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गाथा ९४ ]
दसणमोहोवसामणा
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के प्रमाण ४ में देने पर लब्ध १ आया। यही प्रकृतमें विशेषका प्रमाण है। इस हिसाबसे यहाँ प्रथम खण्डमें तो वृद्धिका प्रश्न ही नहीं उठता। दूसरे खण्डमें प्रथम खण्डसे १ संख्या की वृद्धि हुई है, तीसरे खण्डमें प्रथम खण्डसे २ संख्याकी और चौथे खण्डमें प्रथम खण्डसे ३ संख्याकी वृद्धि हुई है, क्योंकि प्रथम खण्डसे उत्तरोत्तर द्वितीयादि खण्डोंमें एक-एक अंककी वृद्धि स्वीकार करनेपर उन खण्डोंमें वृद्धिको प्राप्त हुई संख्या उक्तप्रमाण ही प्राप्त होती है। इस प्रकार प्रकृतमें चय धनका कुल योग ६होता है। इसे प्रथम समयके परिणाम १६२ मेंसे घट देनेपर कुल १५६ परिणाम शेष रहे। इसमें खंडप्रमाण संख्या ४ का भाग देने पर ३९ प्रथम खण्डके परिणामोंका प्रमाण होता है। तथा द्वितीयादि खण्डोंका प्रमाण क्रमसे ४०, ४१ और ४२ होता है । यह प्रथम समय के परिणामोंकी खण्डोंमें रचना किस प्रकार है इसका क्रम है । इसी विधिसे द्वितीयादि समयोंके परिणामोंकी ४-४ खण्डोंमें रचना कर लेनी चाहिए । आगे इसीको अंकसंदृष्टिकी रचना द्वारा स्पष्ट करते हैं
समयका परिणामोंका क्रम नं० प्रमाण
प्रथम खण्ड द्वितीय खण्ड तृतीय खण्ड चतुर्थ खण्ड
१६२
४१
४३
१६६ १७०
१७४
१७८ १८२ १८६ १९० १९४ १९८ २०२ २०६ २१० २१४ २१८ २२२
अर्थसंदृष्टिको स्पष्ट करनेके लिये यह अंकसंदृष्टि कल्पित की गई है। इसे देखनेसे विदित होता है कि प्रथम समयके प्रथम खण्डके जो ३९ परिणाम हैं वे मात्र प्रथम समयमें ही किन्हीं जीवोंके पाये जाते हैं द्वितीयादि समयोंमें नहीं। प्रथम समयके द्वितीय खण्डके जो ४० परिणाम है वे किन्हीं जीवोंके प्रथम समय में भी पाये जाते हैं और किन्हीं दूसरे समयमें भी पाये जाते हैं । इससे अगले समयोंमें नहीं। प्रथम समयके तृतीय खण्डके