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गाथा ९४ ]
दंसणमोहोवसामणा
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एवं चैव । विदियणिव्वग्गणकंडय परिणामखंडाणं तदियणिव्वग्गणखंडय परिणामखंडे हिं पुणरुत्तभाव काढूण दव्वं । एत्थ वि पढमखंडपरिणामा चेव अपुणरुत्तभावेण पडिसिद्धा त्ति । एदेणेव कमेण तदिय - चउत्थ- पंचमादिणिव्वग्गणकंडयाणं पि अनंतरोवरिमणिव्वग्गणकंडएहि पुणरुत्तभावं काढूण णेदव्वं जाव दुचरिमणिव्वग्गणकंडय - पढमादिसमय सव्वपरिणामखंडा पढमखंडवज्जा चरिमणिव्वग्गणकंडय परिणामेहिं पुणरुत्ता होण णिट्टिदा ति । संपहि चरिमणिव्वग्गणकंडय परिणामाणं पि सत्थाणे पुणरुत्ता पुणरुत्तभावगवे सणा समयाविरोहेण कायव्वा ।
६९२. अधवा एवमेत्थ सण्णियासो कायव्वो । तं कधं ? पढमसमए जं पढमखंडं तमुवरि केण वि सरिसं ण होइ । पुणो पढमसमयविदियखंडं विदियसमयपढमखंडं च दो विसरिसाणि । पुणो पढमसमयतदियखंडं विदियसमय विदियखंडं च दो विसरिसाणि । एवं गंतूण पुणो पढमसमयचरिमखंडं विदियसमयदुचरिमखंडं च
के प्रथम खण्डके परिणाम अगले समयके किसी भी खण्ढके परिणामोंके सदृश नहीं होते । इसी प्रकार दूसरे निर्वर्गणाकाण्डकके परिणामखण्डोंका तीसरे निर्वर्गणाकाण्डकके परिणामखण्डों के साथ पुनरुक्तपना जानना चाहिए । किन्तु यहाँपर भी प्रथम खण्डके परिणाम ही अपुनरुक्तरूपसे अवशिष्ट रहते हैं । इसी क्रमसे तीसरे, चौथे और पाँचवें आदि निर्वर्गणाकाण्डकोंके भी अनन्तर उपरिम निर्वगणाकाण्डकोंके साथ पुनरुक्तपना वहाँ तक जानना चाहिए जब जाकर द्विचरम निर्वर्गणाकाण्डकके प्रथमादि समयोंके सब परिणामखण्ड प्रथम खण्डको छोड़कर अन्तिम निर्वर्गणाकाण्डकके परिणामोंके साथ पुनरुक्त होकर समाप्त होते हैं। अब अन्तिम निर्वर्गणाकाण्डकके परिणामोंके स्वस्थानमें पुनरुक्त-अपुनरुक्तपनेका अनुसन्धान परमागमके अविरोधपूर्वक करना चाहिए ।
विशेषार्थ – यहाँ निर्वर्गणाकाण्डकके आश्रयसे पूर्व - पूर्व समयके परिणामोंकी उत्तरोत्तर आगे-आगेके परिणामोंके साथ किस प्रकार सदृशता और विसदृशता है यह बतलाया गया है । उदाहरणार्थ प्रथम समयके प्रथम खण्डके परिणाम अगले समयोंके किसी भी खण्डके परिणामों सदृश नहीं हैं। इसी प्रकार दूसरे आदि समयोंके प्रथम खण्डके परिणामोंके विषय में भी जान लेना चाहिए। वे भी उत्तरोत्तर आगे-आगेके समयोंके किसी भी खण्डके परिणामोंके सदृश नहीं हैं। शेष परिणामोंके विषय में ऐसा जानना चाहिए कि प्रथम समय के द्वितीय खण्डके परिणाम तथा दूसरे समयके प्रथम खण्डके परिणाम परस्पर सदृश हैं । इसीप्रकार आगे भी संदृष्टिके अनुसार जान लेना चाहिए ।
$ ९२. अथवा यहाँपर इस प्रकार सन्निकर्ष करना चाहिए । शंका- वह कैसे ?
समाधान- प्रथम समय में जो प्रथम खण्ड है वह ऊपर किसीके साथ भी सदृश नहीं है । पुनः प्रथम समयका दूसरा खण्ड तथा दूसरे समयका प्रथम खण्ड दोनों ही सदृश हैं । पुनः प्रथम समयका तीसरा खण्ड और दूसरे समयका दूसरा खण्ड ये दोनों सदृश हैं । इसी प्रकार जाकर पुनः प्रथम समयका अन्तिम खण्ड तथा दूसरे समयका द्विचरम खण्ड ये
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