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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [सम्मत्ताणियोगदारं १० ६९१. संपहि एदीए संदिट्ठीए अणुकट्टिपरूवणं कस्सामो । तं जहा–अधापवत्तकरणपढमसमयपढमखंडपरिणामा उवरिमसमयपरिणामेसु केहिं मि समाणा ण होति । तत्थेव विदियखंडपरिणामा विदियसमयपढमखंडपरिणामेहिं सरिसा । एवमेत्थतणतदियादिखंडपरिणामाणं पि तदियादिसमयपढमखंडपरिणामेहिं जहाकम पुणरुत्तभावो अणुगंतव्वो जाव पढमसमयचरिमखंडपरिणामा पढमणिव्वग्गणकंडयचरिमसमयपढमखंडपरिणामेहि पुणरुत्ता होदूण णिट्टिदा ति । एवं अधापवत्तकरणविदियादिसमयपरिणामखंडाणं पि पादेकं णिरंभणं कादूण तत्थतणविदियादिखंडपरिणामाणं णिरुद्धसमयादो उवरिमसमयणणिव्वग्गणकंडयमेत्तसमयपंतीणं पढमखंडपरिणामेहिं पुणरुत्तभावो परूवेयव्यो । णवरि सव्वत्थ पढमखंडपरिणामा अपूणरुत्तभावेणावसिट्ठा दट्ठव्या । खण्डके परिणामस्थान तो प्रथम समयमें ही होते हैं । द्वितीय खण्डके परिणामस्थानोंके सदृश परिणामस्थान प्रथम समयके समान द्वितीय समयमें भी पाये जाते हैं। तीसरे खण्डके परिणामस्थानोंके सदृश परिणामस्थान प्रथम समयके समान द्वितीय और तृतीय समयमें भी पाये जाते हैं तथा चौथे खण्डके परिणामस्थानोंके सदृश परिणामस्थान प्रथम समयके समान दूसरे, तीसरे और चौथे समयमें भी पाये जाते हैं। इसी प्रकार आगे भी जानना चाहिए । यतः प्रथम समयके परिणामस्थानोंके सदृश परिणामस्थान चौथे समय तक ही पाये जाते हैं, अतः उक्त विधिसे प्रथम समयके परिणामस्थानोंकी चौथे समय तकके परिणामस्थानोंके साथ सदृशता और विसदृशता होनेसे इन परिणामस्थानोंकी अनुकृष्टि चौथे समयसे लेकर प्रथम समय तक बनती है। निर्वर्गणाकाण्डकका प्रमाण भी इतना ही है । इससे आगे दूसरा निवर्गणाकाण्डक प्रारम्भ होता है। विवक्षित समयके परिणामोंका जिस स्थानसे आगे अनुकृष्टिका विच्छेद होता है उनका नाम निर्वगणाकाण्डक है। जैसे अंकसंदृष्टिकी अपेक्षा प्रथम समयके परिणार्मोकी चौथे समयसे आगे अनुकृष्टिका विच्छेद है, इसलिये यहाँ निर्वर्गणाकाण्डक चार समय प्रमाण हुआ। इस अपेक्षासे इससे आगे दूसरा निर्वर्गणाकाण्डक प्रारम्भ होता है । इसी प्रकार अर्थसंदृष्टिकी अपेक्षा अधःप्रवृत्तकरणके अन्तिम समय तक जान लेना चाहिए।
६९१. अब इस संदृष्टिका आलम्बन लेकर अनुकृष्टिका प्ररूपण करेंगे। यथा-अधःप्रवृत्तकरणके प्रथम समयसम्बन्धी प्रथम खण्डके परिणाम उपरिम समयसम्बन्धी परिणामों मेंसे किन्हीं भी परिणामोंके समान नहीं होते हैं। वहीं पर दूसरे खण्डके परिणाम दूसरे समयके प्रथम खण्डके परिणामोंके समान होते हैं। इसी प्रकार यहाँके अर्थात् प्रथम समयके तीसरे आदि खण्डोंके परिणामोंका भी तृतीय आदि समयोंके प्रथम खण्डके परिणामोंके साथ क्रमसे पुनरुक्तपना तब तक जानना चाहिए जब जाकर प्रथम समयसम्बन्धी अन्तिम खण्डके परिणाम प्रथम निर्वगणाकाण्डकके अन्तिम समयके प्रथम खण्डके परिणामों के साथ पुनरुक्त होकर समाप्त होते हैं। इसी प्रकार अधःप्रवृत्तकरणके द्वितीयादि समयोंके परिणामखंडोंको भी पृथक-पृथक विवक्षित कर वहाँके द्वितीय आदि खण्डगत परिणामोंका विवक्षित समय ( द्वितीय आदि समय ) से लेकर ऊपर एक समय कम निर्वर्गणाकाण्डक प्रमाण समयपंक्तियों के प्रथम खण्डके परिणामोंके साथ पुनरुक्तपनेका कथन करना चाहिए। इतनी विशेषता है कि सर्वत्र प्रथम खण्डके परिणाम अपुनरुक्तपनेसे अवशिष्ट जानने चाहिए। अर्थात् प्रत्येक समय
१. ता०प्रती परूवेमो इति पाठः ।