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तस्स
सिरि-जइवसहाइरियविरइय-चुण्णिसुत्तसमण्णिदं सिरि-भगवंतगुरणहरभडारोवइलैं कसा य पाहुड
तस्स सिरि-वीरसेरणाइरियविरइया टीका
जयधवला
तत्थ वंजणे ति अणियोगद्दारं
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णमो अरहंताणं वंजण-लक्खणभूसियमणंजणं तं जिणं णमंसित्ता ।
वंजणसुत्तत्थमहं समासदो वण्णइस्सामि' ॥ * वंजणे त्ति अणिओगद्दारस्स सुत्। -
जो व्यञ्जन और लक्षण चिन्होंसे विभूषित हैं और जो विगत अञ्जन हैं अर्थात् द्रव्यमल और भावमलसे रहित हैं उन जिनदेवको नमस्कारकर मैं व्यञ्जनसूत्रोंके अर्थका संक्षेपमें वर्णन करूँगा ॥१॥ .
* अब व्यञ्जन अनुयोद्वारके गाथासूत्रोंका विशेष व्याख्यान करते हैं। : १. ता प्रती वग्णइस्सामो (मि ) इति पाठः ।
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