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पढमगाहासुत्तस्स अत्थपरूषणा
गाथा ७० ]
१५१ ___ * तं जहा।
६३. सुगममेदं पुच्छावक्कं । एवं पुच्छाविसईकयाणं गाहासुत्ताणं जहाकममेसो सरूवणिद्देसो(१७) कोहो चउव्विहो वुत्तो माणो वि चउव्विहो भवे ।
माया चउव्विहा वुत्ता लोहो वि य चउव्विहो ॥१-७०॥
६४. एसा ताव पढमा सुत्तगाहा । एदीए कोह-माण-माया-लोहाणं पादेक्कं चउन्विहत्तमेत्तं पइण्णादं । एत्थ कोहो चउव्विहो ति वुत्ते किमणंताणुबंधिपञ्चक्खाणापच्चक्खाण-संजलणभेएण कोहस्स चउव्विहत्तमहिप्पेदं, आहो पयारंतरेणे त्ति ? ण ताव अणंताणुबंधिकोहादिभेएण चउविहत्तमेत्थ विवक्खियं, तहाविहस्स भेदणिद्देसस्स पयडिविहत्तिआदिसु पुत्वमेव सुणिण्णीदत्तादो उवरिमपरूवणाए तप्पडिबद्धत्तदसणादो च । किंतु एग-वि-ति-चउट्ठाणमेयभिण्ण-कसायाणुभागोदयजणिदणग-पुढविबालुगोदरारायिसरिसपरिणाममेदेण कोहस्स चउप्पयारत्तमेत्थ विवक्खियं, तहाविहमेदपरूवणाए चेव उवरिमाणं गाहासुत्ताणं पडिबद्धत्तदंसणादो। एवं माण-माया-लोभाणं पि अपयदमेदचउक्कणिवारणमुहेण पयदचउम्मेदपरूवणं कायव्वं ।
* वे जैसे।
$ ३. यह पृच्छावाक्य सुगम है । इसप्रकार पृच्छाके विषयको प्राप्त हुई गाथासूत्रोंका यह क्रमसे स्वरूपनिर्देश है
* क्रोध चार प्रकारका कहा गया है, मान भी चार प्रकारका है, माया चार प्रकारकी कही गई है और लोभ भी चार प्रकारका है ॥१-७०॥
६४. सर्वप्रथम यह पहली सूत्रगाथा है। इस द्वारा क्रोध, मान, माया और लोभ इनमेंसे प्रत्येककी चार प्रकारके होनेकी प्रतिज्ञा की गई है।
शंका-यहाँपर क्रोध चार प्रकारका है ऐसा कहनेपर क्या अनन्तानुबन्धी, प्रत्याख्यान, अप्रत्याख्यान और संज्वलनके भेदसे चार प्रकारका क्रोध अभिप्रेत है या प्रकारान्तरसे वह चार प्रकारका अभिप्रेत है ?
समाधान–यहाँ अनन्तानुबन्धी क्रोध आदिके भेदसे वह चार प्रकारका विवक्षित नहीं है, क्योंकि उस प्रकारके भेदोंका निर्देश प्रकृतिविभक्ति आदिमें पहले ही अच्छी तरहसे निर्णीत कर आये हैं तथा आगेकी प्ररूपणामें उनका सम्बन्ध देखा जाता है। किन्तु कषायोंका अनुभाग एक, दो, तीन और चार स्थानोंके भेदसे विभक्त है, अतः उसके उदयसे नगराजि, पृथिवीराजि, बालुकाराजि, उदकराजिके समान परिणामोंके भेदसे क्रोधके चार प्रकार यहाँ विवक्षित हैं, क्योंकि उस प्रकारके भेदोंके कथनमें ही उपरिम गाथासूत्रोंका सम्बन्ध देखा जाता है। इसी प्रकार मान, माया और लोभके भी अप्रकृत भेदचतुष्कके निवारणद्वारा प्रकृत भेदचतुष्कका कथन करना चाहिए।