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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[उवजोगो७ १. उवजोगपरूवणाणंतरं किमट्ठमेदं चउट्ठाणसण्णिदमणिओगद्दारमोइण्णमिदि चे ? वुच्चदे-कोहादिकसायाणमुवजोगो एयवियप्पो ग होइ, किंतु एग-वि-तिचउट्ठाणमेयभिण्णकसायाणुभागोदयजणिदत्तादो पादेक्कं चउप्पयारो होदि त्ति एवंविहस्स अत्थविसेसस्स णिदरिसणोवणयमुहेण पदुप्पायणट्टमेदमणियोगद्दारमोइण्णं, तहाभूदत्थविसेसपदुप्पायणम्मि गाहासुत्ताणमुवरिमाणं पडिबद्धत्तदंसणादो। अदो चेव चउट्ठाणसण्णा एदस्स सुसंबद्धा । लदासमाणादिभेयभिण्णाणं चदुण्हं द्वाणाणं समाहारो चउट्ठाणं तप्परूवयमणियोगद्दारं पि चउट्ठाणमिदि, गोण्णपदणामावलंबणादो। एवमेदेण संबंधेणागदस्सेदस्स अणियोगद्दारस्स विहासणहमेत्थ गाहासुत्तावयारो कीरदे
* चउट्ठाणे त्ति अणियोगदारे पुव्वं गमणिज्जं सुत्।
२. चउट्ठाणे ति जमणिओगद्दारं कसायपाहुडस्स पण्हारसण्हमत्थाहियाराणं मज्झे अट्ठमं तस्सेदाणिमत्थविहासणमहिकीरदे । तत्थ य पुव्वं पढममेव ताव गमणिजमणुगंतव्वं, सुत्तं गुणहराइरियमुहकमलविणिग्गयमणंतत्थगन्भं गाहासुचमिदि वुर्ग होइ । जइ वि एत्थ सोलस सुनगाहाओ उवरि भणिस्समाणाओ तो वि सुलत्थजाइदुवारेण तासिमेयनमत्थि चि एयवयणणिदेसो ण विरुज्झदे ।
१. शंका–उपयोग अनुयोगद्वारके कथन करनेके बाद चतुःस्थान संज्ञावाला यह अनुयोगद्वार किसलिये आया है ?
समाधान-कहते हैं, क्रोधादि कषायोंका उपयोग एक प्रकारका नहीं होता, किन्तु कषायोंका अनुभाग एक, दो, तीन और चार प्रकारके भेदोंमें विभक्त है, अतः उसके उदयसे उत्पन्न होनेके कारण कषायोंका उपयोग प्रत्येक चार प्रकारका है इसप्रकार इंसप्रकारके अर्थविशेषका दृष्टान्तोंद्वारा कथन करनेके लिये यह अनुयोगद्वार आया है, क्योंकि आगेके गाथासूत्रोंका उस प्रकारके अर्थविशेषके कथनके रूपमें सम्बन्ध देखा जाता है और इसीलिये इस अनुयोगद्वारकी चतुःस्थान संज्ञा सुसम्बद्ध है।
लतासमान आदि भेदोंमें विभक्त चार स्थानोंका समाहार चतुःस्थान है और उसका कथन करनेवाला अनुयोगद्वार भी चतु:स्थान है, क्योंकि इस संज्ञाके करनेमें गौण्यपदका अवलम्बन लिया है। इस प्रकार इस सम्बन्धसे प्राप्त हुए इस अनुयोगद्वारका कथन करनेके लिये यहाँ गाथासूत्रोंका अवतार करते हैं
* चतुःस्थान नामक अनुयोगद्वारमें सर्वप्रथम गाथासूत्र जानना चाहिए।
६२. कषायप्राभृतके पन्द्रह अर्थाधिकारों से चतुःस्थान नामका जो आठवाँ अनुयोगद्वार है, उसका इस समय अर्थ सहित व्याख्यान करते हैं। उसमें 'पुन्वं' अर्थात् प्रथम ही गाथासूत्र 'गमणिज्ज' अर्थात् जानना चाहिए। यहाँपर सूत्रपदसे तात्पर्य गुणधर आचार्यके मुख-कमलसे निकला हुआ अनन्त अर्थ गर्भित गाथासूत्र है यह उक्त कथनका तात्पर्य है। यद्यपि यहाँपर आगे १६ सोलह सूत्रगाथाएं कही जायगीं तो भी सूत्ररूप अर्थकी एक जाति है इस अपेक्षा उनमें एकपना है, इसलिये एकवचन निर्देश विरोधको प्राप्त नहीं होता।