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१०८ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ उवजोगो ७ 5२३८. एत्तो बादालीसपदणिबद्धं परत्थाणप्पाबहुअं पि चिंतिय णेदव्वमिदि वुत्तं होइ । तं पुण बादालीसपदमप्पाबहुअं संपहियकाले विसिट्ठोवएसाभावादो ण सम्ममवगम्मदि त्ति ण तव्विवरणं कीरदे ।
* तदो छट्ठी गाहा समत्ता भवदि।
$ २३९. एवमेदं समाणिय संपहि सत्तमगाहाए जहावसरपत्तमत्थंविहासणं कुणमाणो सुत्तपबंधमुत्तरं भणइ
* 'उवजोगवग्गणाहि य अविरहिदं काहि विरहियं वा वि. त्ति एदम्मि अद्ध एक्को अत्थो, विदिये अद्ध एको अत्थो; एवं दो अत्था ।.
___$ २४०. एदेण सुत्तावयवेण एदिस्से सत्तमीए सुत्तगाहाए दोसु अत्थाहियारेसु पडिबद्धत्तं परूविदं । तत्थ ताव पुव्वद्धे दुविहाओ उवजोगवग्गणाओ अहिकरिय तासु जीवेहिं विरहिदाविरहिदहाणपरूवणा. णाम पढमो अत्थो णिबद्धो, उवजोगवग्गणासहचरिदाणं जीवाणमुवजोगवग्गणाववएसं कादण तेहिं विरहिदमविरहिदं वा के द्वाणं होदि त्ति पुच्छामुहेण सुत्तत्थसंबंधावलंबणादो। एत्थ 'काहिं त्ति' वुत्ते केत्तियमेत्ताहिं उवजोगवग्गणासहचरिदजीववग्गणाहिं के द्वाणमविरहिदं होदि त्ति घेत्तव्यं । अहवा उवजोगवग्गणाहिं काल-भावविसयाहिं केत्तियमेत्ताहिं गदाहिं जीवेहिं विरहिदं द्वाणं होइ, केत्तियमेत्ताहिं वा णिरंतरसरूवाहिं जीवविरहिदमद्धाणं लब्भइ त्ति पदसंबंध कादूण
$ २३८. अब ब्यालीस पदोंमें निबद्ध परस्थान अल्पबहुत्वका भी विचार कर कथन करना चाहिए यह उक्त कथनका तात्पर्य है। किन्तु वह ब्यालीस पदविषयक अल्पबहुत्व वर्तमान कालमें विशिष्ट उपदेशका अभाव होनेसे सम्यक् प्रकारसे ज्ञात नहीं है, इसलिए उसका विशेष व्याख्यान नहीं करते हैं।
* इस प्रकार पूर्वोक्त प्रकारसे व्याख्यान करनेपर छठी गाथा समाप्त होती है ।
$ २३९. इस प्रकार इस गाथाके व्याख्यानको समाप्तकर अब सातवीं गाथाके अवसर प्राप्त अर्थका विशेष व्याख्यान करते हुए आगेके सूत्रप्रबन्धको कहते हैं
* 'कितनी उपयोगवर्गणाओंसे कौन स्थान अविरहित पाया जाता है और कौन स्थान विरहित पाया जाता है। इस प्रकार गाथाके इस पूर्वार्ध में एक अर्थ निबद्ध है
और गाथाके उत्तरार्धमें एक दूसरा अर्थ निबद्ध है। इस प्रकार इस गाथामें दो अर्थ निबद्ध हैं।
२४०. इस सूत्रवचन द्वारा यह सातवीं सूत्रगाथा दो अर्थाधिकारोंमें निबद्ध है यह कहा गया है। उनमेंसे सर्वप्रथम गाथाके पूर्वार्धमें दो प्रकारकी उपयोगवर्गणाओंको अधिकृत कर उनमें जीवोंसे रहित और सहित स्थानप्ररूपणा नामक प्रथम अर्थाधिकार निबद्ध है, क्योंकि उपयोग वर्गणाओंसे युक्त जीवोंकी उपयोगवर्गणा संज्ञा करके उनसे रहित या सहित कौन स्थान है इस प्रकारकी पृच्छाद्वारा सूत्रका अर्थके साथ सम्बन्धका अवलम्बन लिया गया है। इस गाथामें 'काहिं' ऐसा कहनेपर कितनी उपयोगवर्गणाओंसे युक्त जीववर्गणाओंसे कौन स्थान युक्त है यह अर्थ ग्रहण करना चाहिए। अथवा काल और भावविषयक कितनी उपयोगवर्गणाओंके जानेके बाद जीवोंसे रहित स्थान होता है, अथवा निरन्तरस्वरूप कितनी