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गाथा ६८]
छट्टगाहासुत्तस्स अत्थपरूवणा हीणस्सेव जीवरासिस्स तब्भावेण परिणमणदंसणादो। ण च तहा परिणममाणयस्स तस्स माणकालसंभवो अत्थि, माणकसाये चेव सव्वोवसंहारेण तदवट्ठाणाणुलंभादो । तम्हा एत्थ माणकालो पत्थि त्ति भणिदं । णोमाणकालो मिस्सयकालो य अत्थि । कि कारणं ? णिरुद्धसव्वजीवरासिस्स माणवदिरित्तसेसकसाएसु चेवावट्ठाणे णोमाणकालो होइ, माणेदरकसाएसु जहापविभागमवट्ठाणे मिस्सकालो होदि त्ति एवंविहसंभवस्स परिप्फुडमुवलंभादो।
* अवसेसाणं णवविहो कालो ।
$२०८. तेसिं चेव वट्टमाणसमयकोहोवजुत्तजीवाणं माणवदिरित्तसेसकसाएसु पादेकं तिविहकालसंभवादो तत्थ गवविहो कालो समुप्पजइ त्ति वुत्तं होइ । कुदो एवं ? वट्टमाणसमए कोहोवजुत्तसव्वजीवरासिस्स अदीदकालम्मि एगसमएण सव्वप्पणा प्राप्त नहीं हो सकती, क्योंकि उससे विशेष हीन जीवराशिका ही मानभावसे परिणमन देखा जाता है और इस प्रकार परिणमन करनेवाली उस जीवराशिका मानकाल सम्भव नहीं है, क्योंकि समस्त राशिका उपसंहार होकर मानकषायमें ही उसका अवस्थान नहीं पाया जाता। इसलिए यहाँ मानकाल नहीं है यह कहा है। नोमानकाल और मिश्रकाल है, क्योंकि विवक्षित समस्त जीवराशिका मानकषायके सिवाय शेष कषायोंमें ही अवस्थान होनेपर नोमानकाल होता है तथा मानकषाय और अन्य कषायोंमें यथाविभाग अवस्थान होनेपर मिश्रकाल होता है, क्योंकि इस प्रकारका सम्भव स्पष्टरूपसे बन जाता है।
विशेषार्थ-वर्तमानमें जितनी जीवराशि क्रोधभावसे परिणत है उतनी सबकी सब जीवराशि अतीतकालमें एक साथ मानभावसे परिणत नहीं हो सकती, क्योंकि क्रोधकषायके कालसे मानकषायका काल अल्प है, इसलिये अपने कालके भीतर जितनी अधिक क्रोधराशिका संचय होता है, मानकालके भीतर उतनी अधिक मानराशिका संचय होना संभव नहीं है । स्पष्ट है कि वर्तमानमें जो जीव क्रोधभावसे परिणत हैं उन सबका अतीतकाल में केवल मानभावसे परिणत होना सम्भव नहीं है, इसलिए परस्थानकी अपेक्षा यहाँ मानकालका निषेध किया है । परस्थानकी अपेक्षा इन जीवोंका नोमानकाल और मिश्रकाल बन जाता है, क्योंकि यह सम्भव है कि जो वर्तमानमें क्रोधभावसे परिणत हैं वे अतीतकालमें मानकषायसे परिणत न होकर अन्य कषायरूपसे परिणत रहे हैं, इसलिए तो नोमानकाल बन जाता है
और जो वर्तमानमें क्रोधभावसे परिणत हैं वे अतीत कालमें कुछ तो मानभावसे परिणत रहे हैं और कुछ अन्य कषायरूपसे परिणत रहे हैं, इसलिए मिश्रकाल भी बन जाता है।
* अवशेष कषायोंकी अपेक्षा नौ प्रकारका काल होता है।
६ २०८. क्योंकि वर्तमान समयमें क्रोधकषायमें उपयुक्त हुए उन्हीं जीवोंका मानकषायके सिवाय शेष कषायोंमेंसे प्रत्येक कषायकी अपेक्षा तीन प्रकारका काल सम्भव होनेसे वहाँ नौ प्रकारका काल उत्पन्न होता है यह उक्त कथनका तात्पर्य है। .
शंका-ऐसा कैसे होता है ? समाधान-क्योंकि वर्तमान समयमें क्रोधकषायमें उपयुक्त हुई सब जीवराशिका