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________________ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ वेदगो ७ * छण्णोकसायाणं जहएणाणुभागुदीरणा कस्स ? १४७. सुगमं । * खवगस्स चरिमसमयअपुव्वकरणे वट्टमाणस्स। $ १४८. कुदो ? तत्थेदेसिमपुव्वकरणचरिमविसोहीए हेद्विमासेसविसोहीहितो अणंतगुणाए उदीरिजमाणाणुभागस्स सुट्ट जहण्णभावोववत्तीदो। एवमोघेण जहण्णसामित्तं समत्तं । $१४९. संपहि आदेसपरूवणट्ठमेत्थुच्चारणाणुगमं वत्तइस्सामो। तं जहाजहण्णए पयदं । दुविहो णिदेसो-ओघेण आदेसेण य । ओघेण मिच्छत्त-अणंताणु०४ जह० अणुभागुदी० कस्स ? अण्णद० संजमाहिमुहस्स सव्वविसुद्धस्स. चरिमसमयमिच्छाइट्ठिस्स । सम्म० जह० अणुभागुदी० कस्स ? अण्णद० समयाहियावलियचरिमसमयअक्खीणदंसणमोहस्स । सम्मामि० जह० कस्स ? अण्णद्० सम्मत्ताहिमुहस्स चरिमसमयसम्मामिच्छाइट्ठिस्स सव्वविसुद्धस्स । अपञ्चक्खाण०४ जह• अणुभागुदी. कस्स ? अण्णद० संजमाहिमुहस्स चरिमसमयअसंजदसम्माइट्ठिस्स सव्वविसुद्धस्स । एवं पञ्चक्खाण०४ । णवरि चरिमसमयसंजदासंजदस्स । कोहसंजल० जह० अणुभागुदी० कस्स ? अण्णद० खवगस्स चरिमसमयउदीरेमाणगस्स । एवं माण-माया-लोभसंजलणाणं। * छह नोकषायोंकी जघन्य अनुभाग उदीरणा किसके होती है ? 5 १४७. यह सूत्र सुगम है। * अपूर्वकरणके अन्तिम समयमें विद्यमान क्षपकके होती है। $ १४८. क्योंकि अधस्तन समस्त विशुद्धियोंसे अनन्तगुणी अपूर्वकरणके अन्तिम समयमें पाई जानेवाली विशुद्धिके कारण वहाँपर इन कर्मोके उदीर्यमाण अनुभागका अत्यन्त जघन्यपना पाया जाता है। इस प्रकार ओघसे जघन्य स्वामित्व समाप्त हुआ। $ १४९. अब आदेशका कथन करनेके लिए यहाँ उच्चारणानुगमको बतलाते हैं। यथा-जघन्यका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी जघन्य अनुभाग उदीरणा किसके होती है ? संयमके अभिमुख हुए सर्व विशुद्ध अन्तिम समयवर्ती अन्यतर मिथ्यादृष्टिके होती है । सम्यक्त्वकी जघन्य अनुभाग उदीरणा किसके होती है ? समयाधिक आवलिके उदोरणासम्बन्धी अन्तिम समयवर्ती अक्षीण नमोही अन्यतर सम्यग्दृष्टिके होती है। सम्यग्मिध्यात्वकी जघन्य अनुभागउदीरणा किसके होती है ? सम्यक्त्वके अभिमुख हुए सर्वविशुद्ध अन्तिम समयवर्ती अन्यतर सम्यग्मिध्यादृष्टिके होती है । अप्रत्याख्यानकषायचतुष्ककी जघन्य अनुभाग उदीरणा किसके होती है ? संयमके अभिमुख हुए सर्वविशुद्ध अन्तिम समयवर्ती अन्यतर असंयतसम्यग्दृष्टिके होती है। इसी प्रकार प्रत्याख्यान कषायचतुष्ककी अपेक्षा जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि अन्तिम समयवर्ती संयतासंयतके कहनी चाहिए। क्रोधसंज्वलनकी जघन्य अनुभाग उदीरणा किसके होती है ? अन्तिम समयमें उदीरणा करनेवाले अन्यतर अपकके होती है। इसी प्रकार मान,
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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