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________________ गा० ६२] उत्तरपयडिअणुभागउदीरणाए सामित्त पुरिसबेद० जह० अणुभागुदी० कस्स ? अण्णद० खवगस्स समयाहियावलियषढमट्ठिदिमुदीरेमाणस्स । एवमित्थिवेद-णस० । छण्णोक० जह० अणुभागुदी० कस्स ? अण्णद० चरिमसमयअपुव्वकरणखवगस्स सबविसुद्धस्स । एवं मणुसतिए । णवरि वेदा जाणियव्वा । $ १५०. आदेसेण णेरड्य० मिच्छ० जह० कस्म ? अण्णद० पढमसम्मत्ताहिमुहस्स समयाहियावलियचरिमसमयमुदीरेमाणगस्स । एवमणंताणु० । णवरि चरिमसमयमुदीरेमाणगस्स । सम्म०-सम्मामि० ओघं । बारसक०-सत्तणोक० जह० अणुभागुदी० कस्स ? अण्णद० सम्माइद्विस्स सव्वविसुद्धस्स । एवं पढमाए । विदियादि जाव सत्तमा त्ति एवं चेव । णवरि सम्म० जह० कस्स ? अण्णद० सम्माइद्विस्स सव्वविसुद्धस्स । $ १५१. तिरिक्खेसु मिच्छ०-अणंताणु०४ जह० कस्स ? अण्णद० संजमासंजमाहिमुहचरिमसमयमिच्छाइट्ठिस्स सव्वविसुद्धस्स । सम्म०-सम्मामि० ओघं । अपच्चक्खाण०४ जह० अणुभागुदी० कस्स ? अण्णदरस्स संजमासंजमाहिमुहचरिमसमयवेदगसम्माइट्ठिस्स सव्वविसुद्धस्स । अट्ठक०-णवणोक० जह० अणुभागुदी०' कस्स ? माया और लोभसंज्वलनकी अपेक्षा जानना चाहिए। पुरुषवेदकी जघन्य अनुभाग उदीरणा किसके होती है ? समयाधिक आवलि कालवाली प्रथम स्थितिकी उदीरणा करनेवाले अन्यतर अपकके होती है । इसी प्रकार स्त्रीवेद और नपुंसकवेदकी अपेक्षा जानना चाहिए। छह नोकषायोंकी जघन्य अनुभाग उदीरणा किसके होती है ? अन्तिम समयवर्ती सर्वविशुद्ध अन्यतर अपूर्वकरण क्षपकके होती है। इसी प्रकार मनुष्यत्रिकमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि जिसके जो वेद हो उसे जान लेना चाहिए। $ १५०. आदेशसे नारकियोंमें मिथ्यात्वकी जघन्य अनुभाग उदीरणा किसके होती है ? समयाधिक आवलिके उदीरणासम्बन्धी अन्तिम समयमें उदीरणा करनेवाले प्रथम सम्यक्त्वके अभिमुख हुए अन्यतर नारकीके होती है। इसी प्रकार अनन्तानुबन्धीकी अपेक्षा जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि अन्तिम समयमें उदीरणा करनेवालेके कहना चाहिए । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका भंग ओघके समान है । बारह कषाय और सात नोकषायोंकी जघन्य अनुभाग उदीरणा किसके होती है ? अन्यतर सर्वविशुद्ध सम्यग्दृष्टिके होती है। इसी प्रकार पहली पृथिवीमें जानना चाहिए। दूसरीसे लेकर सातवीं पथिवी तकके नारकियोंमें इसी प्रकार जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि सम्यक्त्वकी जघन्य अनुभाग उदीरणा किसके होती है ? अन्यतर सर्वविशुद्ध सम्यग्दृष्टिके होती है। $ १५१. तिर्यञ्चोंमें मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी जघन्य अनुभागउदीरणा किसके होती है ? संयमासंयमके अभिमुख हुए अन्तिम समयवर्ती सर्वविशुद्ध अन्यतर मिथ्यादृष्टिके होती है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका भंग ओघके समान है। अप्रत्याख्यानकषायचतुष्ककी जघन्य अनुभागउदीरणा किसके होती है ? संयमासंयमके अभिमुख हुए अन्तिम १. आ प्रतौ णवणोक० अणुभागुदी० इति पाठः ।
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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