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________________ ५१ गा० ६२ ] उत्तरपयडिअणुभागउदीरणाए सामित्त * पंचिंदियतिरिक्खस्स अट्ठवासजादस्स करहस्स सव्वसंकिलिट्ठस्स । $ ११५. एत्थ पंचिंदियतिरिक्खणिद्देसो मणुस - देवर्गादिवुदासट्ठो, तत्थुक्कस्सवेदसंकिलेसाभावादो । कुदो एदं वदे ? एदम्हादो चेव सुत्तादो । अट्ठवासजादस्से तस्स विसेसणमवस्सेहिंतो हेट्ठा सब्बुक्कस्सो वेदसंकिलेसो ण होदि त्ति जाणावणङ्कं । करभस्से त्ति वयणं जादिविसेसेण तत्थेवित्थि - पुरिसवेदाणमुक्कस्साणुभागुदीरणा होदि ति पदुपायण । तस्स वि उक्कस्ससंकिलेसेण परिणदावत्थाए चेव उक्कस्साणुभागउदीरणा होदित्ति जाणावणङ्कं सव्वसंकिलिडस्से त्ति भणिदं । तदो एवंविहस्स जीवस्स पयदुक्कस्ससामित्तमिदि सिद्धं । * णवुंसयवेद-अरदि-सोग-भय-दुगुंछाणमुक्कस्साणुभागुदीरणा कस्स ? $ ११६. सुगमं । * सत्तमाए पुढवीए पेरइयस्स सव्वसंकिलिट्ठस्स । $ ११७. एत्थ सत्तमपुढविम्मि एदेसिं कम्माणमुक्कस्स सामित्तविहाणस्साहिप्पाओ वुच्चदे । तं जहा—एदाओ पयडीओ अच्चतमप्पसत्थसरूवाओ, एयंतेण दुक्खुप्पासहावत्तदो । तदो एदासिमुदीरणाए सत्तमपुढवीए चेव उक्कस्ससामित्तं होइ, तत्तो * आठ वर्षकी आयुवाले तथा सर्व संक्लेश परिणामवाले पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च ऊँटके होती है । $ ११५. यहाँ सूत्रमें मनुष्यगति और देवगतिका निराकरण करनेके लिए 'पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च' पदका निर्देश किया है, क्योंकि उन गतियोंमें उत्कृष्ट वेदरूप संक्लेशका अभाव है । शंका – यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ? समाधान -- इसी सूत्र से जाना जाता है । आठ वर्ष से पूर्व सर्वोत्कृष्ट वेदरूप संक्लेश नहीं होता है इस बातका ज्ञान करानेके लिए उसके विशेषणरूपसे 'अष्टवर्षजात' यह वचन दिया है । करभके ही स्त्रीवेद और पुरुषवेदकी उत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा होती है इस बातका कथन करनेके लिए 'करभस्य' यह वचन दिया है। उसके भी उत्कृष्ट संक्लेशंसे परिणत अवस्थाके होनेपर ही उत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा होती है इस बातका ज्ञान करानेके लिए 'सर्वसंक्लिष्टस्य' यह कहा है। इसलिए इस प्रकारके जीवके प्रकृत उत्कृष्ट स्वामित्व होता है यह सिद्ध हुआ । * नपुंसकवेद, अरति, शोक, भय और जुगुप्साकी उत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा किसके होती है ? $ ११६. यह सूत्र सुगम है । * सातवीं पृथिवीमें सबसे अधिक संक्लेश परिणामवाले जीवके होती है । $ ११७. यहाँ सातवीं पृथिवीमें इन कर्मोंके उत्कृष्ट स्वामित्वके विधान करनेका अभिप्राय कहते हैं । यथा - प्रकृतियाँ अत्यन्त अप्रशस्तस्वरूप हैं, क्योंकि ये एकान्तसे दुःखके उत्पादन करनेकी स्वभाववाली हैं। इसलिए इनकी उदीरणाका सातवीं पृथिवीमें ही उत्कृष्ट स्वामित्व 1
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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