SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 71
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५२ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ वेदगो ७ अण्णस्से दुक्खणिहाणस्स तिहुवणभवण संतरे कहिं पि अगुवलंभादो । तदुदीरणाकारण - झव्वाणं पि असुराणं तत्थेव बहुलं संभवोवलंभादो । * हस्स-रदीणमुक्कस्साणुभागउदीरणा कस्स ? ११८. सुगमं । * सदार-सहस्सारदेवस्स सब्वसंकिलिट्ठस्स । ११९. कुदो ? सदार-सहस्सारदेवेसु रागबहुलेसु हस्स- रदिकारणाणं बहूणमुवलंभादो । णेदमसिद्धं, उकस्सेण छम्मासमेत्तकालं तत्थ हस्स - रंदीणमुदयो होदि ति परमागमोव सबलेण सिद्धत्तादो । एवमोघेण उक्कस्ससामित्तं समत्तं । १२०. संपहि आदेसपरूवणमुच्चारणं वत्तहस्साम । तं जहा—सामित्तं दुविहं – जह० उक० | उकस्से पयदं । दुविहो णि० – ओघेण आदेसेण य । तत्थोघणिसो जइ वित्त संबद्धो परुविदो, तो वि मंदबुद्धीणं सुहावगमणङ्कं ओघादो वत्तहस्सामो । ओघेण मिच्छ०- सोलसक० उकस्साणुभागुदी ० कस्स ? अण्णद० उकस्साणुभागसंतकम्मियस्स उक्कस्ससंकिलिट्ठस्स । णवुंसय ० - अरदि- सोग-भय- दुर्गुछ० उक्क० कस्स ? अण्णद० सत्तमाए णेरइयस्स उक्कस्ससंकिलिट्ठस्स । इत्थिवेद- पुरिसवेद० उक्क० होता है, क्योंकि उससे दुःखका निधानभूत अन्य कोई स्थान तीन भुवनके भीतर कहीं भी उपलब्ध नहीं है। उनकी उदीरणाका कारण अशुभतर बाह्य द्रव्य भी वहीं पर बहुलता से सम्भव है । * हास्य और रतिकी उत्कुष्ट अनुभाग उदीरणा किसके होती है ? $ ११८. यह सूत्र सुगम है । * सबसे अधिक संक्लेश परिणामवाले शतार और सहस्रार कल्पके देवके होती है। $ _११९. क्योंकि रागबहुल शतार और सहस्रार कल्पके देवोंमें हास्य और रतिके बहुत कारण पाये जाते हैं । यह असिद्ध नहीं है, क्योंकि उत्कृष्टसे छह माह तक वहाँ हास्य और रतिका उदय होता है इस परमागमके उपदेशसे यह सिद्ध है । इस प्रकार ओघसे उत्कृष्ट स्वामित्व समाप्त हुआ । $ १२०. अब आदेशका कथन करनेके लिए उच्चारणाको बतलाते हैं । यथा - स्वामित्व दो प्रकारका है— जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है । निर्देश दो प्रकारका है— ओघ और आदेश। वहाँ ओघसे निर्देश यद्यपि सूत्रमें पूरी तरहसे निरूपित कर दिया है तो भी मन्दबुद्ध-शिष्यों को सुखपूर्वक ज्ञान करानेके लिए ओघसे बतलावेंगे । ओघसे मिथ्यात्व और सोलह कषायोंकी उत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा किसके होती है ? जो उत्कृष्ट अनुभाग सत्कर्मवाला है। और उत्कृष्ट संक्लेश परिणामसे युक्त है उसके होती है । नपुंसकवेद, अरति, शोक, भय और जुगुप्साकी उत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा किसके होती है ? उत्कृष्ट संक्लेश परिणामवाले अन्तर सातवीं पृथिवीके नारकीके होती है । स्त्रीवेद और पुरुषवेदकी उत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा १. आ० प्रतौ तत्तो अण्णदरस्स, ता० प्रतौ तदो अण्णस्स इति पाठः ।
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy