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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ वेदगो ७
९४. द्वाणसण्णा दुविहा – जह० उक्क० । उकस्से पयदं । दुविहो णि० - ओघेण आदेसेण य । ओघेण मिच्छ०- बारसक० - छण्णोक० उक्क० चउट्ठाणिया । अणुक० चउट्ठा० तिट्ठाणिया विट्ठाणिया वा । सम्भ० उक्क० विट्ठाणिया । अणुक्क० विट्ठाणिया एगट्ठाणिया वा । सम्मामि० उक्क० अणुक्क० विट्ठाणिया । चदुसंजलण० - तिण्णिवे० उक्क० चउट्टाणिया । अणुक्क० चउट्ठाणिया वा तिट्ठाणिया वा विट्ठानिया वा एगट्ठाणिया वा । एवं मणुसतिए । णवरि पजत्तरसु इत्थवेदो णत्थि । मणुसिणीस पुरिस० - स ० णत्थि ।
उक्क ०
$ ९५. आदेसेण णेरइय० मिच्छ० - सोलसक० - सत्तणोक० चउट्ठाणिया । अणुक्क० चउट्ठा० तिट्ठाणि० विट्ठाणि० । सम्म० - सम्मामि० ओघं । एवं पढमाए । विदियादि जाव सत्तमिति एवं चैव । णवरि सम्म० उक्क० अणुक्क० विट्ठाणिया । तिरिक्ख- पंचिदियतिरिक्खतिये मिच्छ० - सोलसक० - णवणोक० उक्क० चउट्ठाणिया । अणुक्क० चउट्ठा० तिट्ठा० विट्ठाणिया । सम्म० - सम्मामि० ओघं । वरि प० इत्थवेदो णत्थि । जोणिणीसु पुरिस० - नपुंस० णत्थि । सम्म० उक्क०
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$ ९४. स्थानसंज्ञा दो प्रकारकी है - जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है । निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे मिथ्यात्व, बारह कषाय और छह नोकषायोंकी उत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा चतुःस्थानीय है । अनुत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा चतुःस्थानीय भी है, स्थानीय भी है और द्विस्थानीय भी है । सम्यक्त्वकी उत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा द्विस्थानीय है । अनुत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा द्विस्थानीय भी है और एकस्थानीय भी है । सम्यग्मिथ्यात्व उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा द्विस्थानीय है । चार संज्वलन और तीन वेदोंकी उत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा चतुःस्थानीय है । अनुत्कृष्ट अनुभाग- उदीरणा चतुःस्थानीय भी है, त्रिस्थानीय भी है, द्विस्थानीय भी है और एकस्थानीय भी है । इसी प्रकार मनुष्यत्रिक में जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि मनुष्यपर्याप्तकों में स्त्रीवेद नहीं है । तथा मनुष्यिनियों में पुरुषवेद और नपुंसकवेद नहीं है ।
$ ९५. आदेश से नारकियोंमें मिथ्यात्व, सोलह कषाय और सात नोकषायोंकी उत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा चतुःस्थानीय है । अनुत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा चतुःस्थानीय भी है, त्रिस्थान भी है और द्विस्थानीय भी है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका भंग ओघके समान है । इसी प्रकार पहली पृथिवीमें जानना चाहिए। दूसरीसे लेकर सातवीं पृथिवी तकके नारकियों में इसी प्रकार जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि सम्यक्त्वकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा द्विस्थानीय है । तिर्यञ्च और पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चत्रिकमें मिथ्यात्व, सोलह कषाय और नौ नोकषायोंकी उत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा चतुःस्थानीय है । अनुत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा चतु:स्थानीय भी है, स्थानीय भी है और द्विस्थानीय भी है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वा भंग के समान है। इतनी विशेषता है कि तिर्यञ्चपर्याप्तकों में स्त्रीवेद नहीं है तथा
१. ता. प्रतौ णत्थि । जोणिणीसु ( मजुसिणीसु ) पुरिस० स० इति पाठः । आ. प्रतौ णत्थि जोगिणीसुपुरिस० सं० इति पाठः । २. आ. प्रतौ पंचिदियतिये इति पाठः ।