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________________ ४० ..जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ वेदगो ७ मणुभागोदीरणाए पउनिदसणादो, संजदासंजदप्पहुडि जाव अपुवकरणो चि देसघादिभावेणुदीरणाए पउत्रिणियमदंसणादो च । * दुट्ठाणिया वा तिहाणिया बा चउट्ठाणिया वा। ६९१. कुदो ? संजदासंजदादिउवरिमगुणट्ठाणेसु छण्णोकसायाणमणुभागोदीरणाए देसघादिवाणियत्तणियमदंसणादो। हेडिमेसु वि गणपडिवण्णेसु विट्ठाणियाणुभागदीरणाए देस-सव्वघादिविसेसिदाए संभवोक्लंभादो । मिच्छाइट्ठिम्मि विट्ठाण-तिट्ठाणचउट्ठाणवियप्पाणं सव्वेसिमेव संभवादो। संपहि चदुसंजलण-णवणोकसायाणमविसेसेण सव्वगुणट्ठाणेसु जीवसमासेसु च परिणामपच्चएण देसघादिउदीरणा. संभवदि चि पदुप्पायणमुनरसुतमाह-- * चदुसंजलण-णवणोकसायाणमणुभागउदीरणा एइंदिए विं देसघादी - ९२. ण केवलसंजदादिउपरिमगुणट्ठाणेसु चेव पयदकम्माणं देसघादिउदीरणा, किं तु असंजदसम्माइटिप्पहुडि जाव सण्णिमिच्छाइट्टित्ति ताव एदेसु वि गुणहाणेसु विसोहिकाले देसघादिउदीरणाए णत्थि पडिसेहो। ण च केवलं सण्णिपाओग्गविसोहीए चेव देसघादिउदीरणा जायदे, किं तु असण्णिपंचिंदिय-विगलिंदियपाओग्गविसोहीए वि एदेसि कम्माणं देसघादिउदीरणाए णत्थि णिवारणा । किं बहुणा, चदुसंजलणउदीरणाकी देशधाति और सर्वघातिभावसे प्रवृत्ति देखी जाती है। तथा संयतासंयत गुणस्थानसे लेकर अपूर्वकरण गुणस्थान तक देशघातिरूपसे इनकी उदीरणाकी प्रवृत्तिका नियम देखा जाता है। * वह द्विस्थानीय है, त्रिस्थानीय है और चतुःस्थानीय है। . ९१. क्योंकि संयतासंयत आदि आगेके गुणस्थानोंमें छह नोकषायोंकी अनुभाग उदीरणाके देशघातिपने और द्विस्थानीयपनेका नियम देखा जाता है, नीचेके गुणस्थानप्रतिपन्न जीवोंमें भी देशधाति और सर्वघाति भेदरूप द्विस्थानीय अनुभाग उदीरणा पाई जाती है तथा मिथ्यादृष्टि गुणस्थानमें द्विस्थानीय, त्रिस्थानीय और चतुःस्थानीय भेदरूप सभी अनुभाग उदीरणा सम्भव है । अब चार संज्वलन और नौ नोकषायोंको सामान्यरूपसे परिणाम प्रत्ययवर्श सब गुणस्थानों और सब जीवसमासोंमें देशवाति उदीरणा सम्भव है यह कथन करनेके लिए आगेका सूत्र कहते हैं-18 TIRST * चार संज्वलन और नौ नोकषायोंकी अनुभाग उदीरणा एकेन्द्रिय जीवमें भी देशघाति होती हैERE PERMER $ ९२. केवल संयत आदि उपरिम गुणस्थानोंमें ही प्रकृत कर्मोंकी देशघाति उदीरणा नहीं होती, किन्तु असंयतसम्यग्दृष्टि प्रभृति संज्ञी मिथ्यादृष्टि गुणस्थान तकके इन गुणस्थानोंमें भी विशद्धिके कालमें देशघाति उदीरणाका प्रतिषेध नहीं है। केवल संज्ञी प्रायोग्य विशद्धिसे ही देशघाति उदीरणा होती है सो बात नहीं है, किन्तु असंज्ञी पञ्चेन्द्रिय और विकलेन्द्रिय प्रायोग्य विशुद्धिसे भी इन कर्मोंकी देशघाति उदीरणाका निषेध नहीं है। बहुत कहनेसे क्या,
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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