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________________ गा० ६२] उत्तरपय डिअणुभागउदीरणाए सण्णा * चदुसंजलण-तिवेदाणमणुभागुदीरणा देसघादी वा सव्वघादी वा । १८८. कुदो ? एदेसिं जहण्णाणुभागुदीरणाए देसघादिरणियमदंसणादो, उक्कस्साणुभागुदीरणाए च णियमदो सव्वघादिनदंसणादो, अजहण्णाणुक्कस्साणुभागोदीरणासु देस-सव्वघादिभावाणं दोण्हं पि समुवलंभादो च । एतदुक्तं भवति-मिच्छाइट्ठिप्पहुडि जाव असंजदसम्माइट्ठि चि ताव एदेसि कम्माणमणुभागदीरणा' सव्वघादी देसघादी च होदि संकिलेस-विसोहिबलेण, संजदासंजदप्पहुडि उवरि सव्वत्थेव देसघादी होदि, तत्थ सव्वधादिउदीरणाए तग्गुणपरिणामेण सह विरोहादो नि । संपहि एत्थेव होणसण्णावहारणहमाह * एगहाणिया वा दुट्ठाणिया तिट्ठाणिया चउट्ठाणिया वा। ६८९. कुदो ? अंतरकरणे कदे एदेसिमणुभागोदीरणाए. णियमेणेगट्ठाणियच. दसणादो । हेट्ठा सव्वत्थेव गुणपडिवण्णेसु दुट्ठाणियाणियमदंसणादो । मिच्छाइट्ठिम्मि दुड्डाण-तिट्ठाण-चउट्ठाणमेदेण परियरमाणाणुमागोदीरणाए दंसणादो। * छएणोसायाणमणुभागउदीरणा देसघादी वा सव्वघादी वा । $९०. कुदो ? असंजदसम्माइटिप्पहुडि हेडा सव्वत्थेव देस-सव्वधादिभावेणेदेसि. परन्तु यह द्विस्थानीय ही होती है, क्योंकि सम्यग्मिध्यात्यके अनुभागमें द्विस्थानीयपनेको छोड़कर प्रकारान्तर सम्भव नहीं है। * चार संज्वलन और तीन वेदोंको अनुभाग उदीरणा देशघाति है और सर्वधाति भी है। ८८. क्योंकि इनकी जघन्य अनुभाग उदीरणामें देशंघातिपनेका नियम देखा जाता है. तथा इनकी उत्कृष्ट अनुभाग उदीरणामें । तथा इनकी अजघन्य-अनुत्कृष्ट अनुभाग उदीरणाओंमें-दोनोंमें ही देशघातिपना और सर्वघांतिपना उपलब्ध होता है। उक्त कथनका यह तात्पर्य है कि मिथ्यादृष्टिसे लेकर असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान तक तो इन कर्मोकी अनुभाग उदीरणा संक्लेश और विशुद्धिके वशसे सर्वघाति और देशघाति दोनों प्रकारकी होती है। तथा संयतासंयत गुणस्थानसे लेकर आगे सर्वत्र देशघाति होती है, क्योंकि इनकी सर्वघाति उदीरणाका संयमासंयम आदि गुणरूप परिणामोंके साथ विरोध है। अब यहीं पर स्थानसंज्ञाका अवधारण करनेके लिए आगेका सूत्र कहते हैं* वह एकस्थानीय है, द्विस्थानीय है, त्रिस्थानीय है और चतुःस्थानीय है। ८९. क्योंकि अन्तरकरण करने पर इनकी अनुभाग उदीरणा नियमसे एकस्थानीय देखी जाती है । नीचे सर्वत्र गुणस्थानप्रतिपन्न जीवोंमें द्विस्थानीयपनेका नियम देखा जाता है । तथा मिथ्यादृष्टि गुणस्थानमें द्विस्थानीय, त्रिस्थानीय और चतुःस्थानीयके भेदसे परिवर्तमान अनुभागकी उदीरणा देखी जाती है। * छह नोकषायोंकी अनुभागउदीरणा देशघाति और सर्वघाति है । $ ९०. क्योंकि असंयतसम्यग्दृष्टि प्रभृति नीचेके गुणस्थानोंमें सर्वत्र इनकी अनुभाग १. ता. प्रतौ -भागुदीरणाए इति पाठः ।
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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