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________________ गा० ६२] मूलपयडिअणुभागउदीरणाए अंतरं भावो अप्पाबहुअं च पलिदो० असंखे भागो । सेसपदा० जह० एयस०, उक्क० आवलि० असंखे०भागो । एवं जाव० । ७५. अंतराणु० दुविहो णि०-ओघेण आदेसेण य । ओघेण अवत्त० जह० एयस०, उक्क० वासपुधत्तं । सेसपदाणं णत्थि अंतरं । एवं तिरिक्खा० । णवरि अवत्त० पत्थि । आदेसेण णेरइय० अणंतगुणवड्डि-हाणि० गत्थि अंतरं णिरंतरं । सेसपदा० जह० एगसमओ, उक्क० असंखेजा लोगा। एवं सव्वणिरय-सव्वपंचिंदियतिरिक्खसव्वदेवा ति । एवं मणुसतिये । णवरि अवत्त० ओघं । मणुसअपज० अणंतगुणवढि-हाणि. जह० एगस०, उक्क० पलिदो० असंखे०भागो। सेसप० जह. एयस०, उक्क ० असंखेजा लोगा । एवं जाव० । ७६. भावाणुगमेण सव्वत्थ ओदइओ भावो । $ ७७. अप्पाबहुआणुगमेण दुविहो णि-ओघेण आदेसेण य । ओषेण सव्वत्थोवा अवत्त०उदी० । अवढि० अणंतगुणा । अणंतभागव ड्ढि-हाणि० असंखे०गुणा । असंखे० भागवड्ढि-हाणि असंखे गुणा । संखेजभागवढि-हाणि० संखेगुणा । संखे०समय है और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है। शेष पद अनुभागके उदीरकोंका जघन्य काल एक समय हैऔर उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए। . ६ ७५. अन्तरानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश। ओघसे अवक्तव्य अनुभागके उदीरकोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल वर्षपृथक्त्वप्रमाण है। शेष पद अनुभागके उदीरकोंका अन्तरकाल नहीं है । इसी प्रकार तिर्य चोंमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनमें अवक्तव्य पद नहीं है। आदेशसे नारकियोंमें अनन्त गुणवृद्धि और अनन्त गुणहानि अनुभागके उदीरकोंका अन्तरकाल नहीं है निरन्तर हैं । शेष पद अनुभागके उदीरकोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल असंख्यात लोकप्रमाण है। इसी प्रकार सब नारकी, सब पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च और सब देवोंमें जानना चाहिए। इसी प्रकार मनुष्यत्रिकमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनमें अवक्तव्य पदका भंग ओघके समान है। मनुष्य अपर्याप्तकोंमें अनन्त गुणवृद्धि और अनन्त गुणहानि अनुभागके उदीरकोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल. पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है। शेष पद अनुभागके उदीरकोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल असंख्यात लोकप्रमाण है। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए। ६७६. भावानुगमकी अपेक्षा सर्वत्र औदयिक भाव है। ६७७. अल्पबहुत्वानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे अवक्तव्य अनुभागके उदीरक जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे अवस्थित अनुभागके उदीरक जीव अनन्तगुणे हैं। उनसे अनन्त भागवृद्धि और अन्त भागहानि अनुभागके उदीरक जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे असंख्यात भागवृद्धि और असंख्यात भागहानि अनुभागके उदीरक जीव असंख्यातगुणे हैं । उनसे संख्यात भागवृद्धि और संख्यात भागहानि अनुभागके उदीरक जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे संख्यात गुणवृद्धि और संख्यात गुणहानि अनुभागके उदीरक जीव
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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