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________________ गा० ६२ ] मूलपयडिअणुभागउदीरणाएं परिमाणादिअणियोगद्दाराणि ३३ ० $ ७१. परिमाणाणु दुविहो णि० ओघेण आदेसेण ये । ओघेण छवड्ढि - हाणिअवट्टि • ति० ? अनंता । अवत्त० केति० ? संखेजा । एवं तिरिक्खा० । णवरि अवत्त० णत्थि । आदेसेण सव्वणिरय- सव्वपंचिदियतिरिक्ख- मणुस अपज०- देवा जाव अवराजिदा ति सव्वपदा० केत्ति० ! असंखेजा । एवं मणुसेसु । णवरि अचत्त केत्ति० ? संखेञ्ज । पञ्जत-मणुसिणी-सव्वदेवा० सव्वपदा० केत्ति०' । संखेजा। एवं जाव० । $ ७२. खेत्ताणु दुविहो णि० - ओषेण आदेसेण य । ओघेण छवढि हाणिअवट्ठि ० के ० १ सव्वलोगे । अवत्त० लोग० असंखे० भागे । एवं तिरिक्खा । णवरि अवत्त णत्थि । सेसंगदीसु सव्वपदा० लोग असंखे० भागे । एवं जाव० । ९ ७३. पोसणाणु ० दुविहो णिद्देसो- ओघेण आदेसेण य। औषण अवत्त० लोग • असंखे० भागो । सेसंपदा सव्वलोगो । एवं तिरिक्खा। णवरि अवत्त० णत्थि । आदेसेण रहय० सव्वपदा० लोग असंखे० भागो छ चोदस भागा । एवं विदियादि सत्तमा ति । णवरि सगपोसणं । पढमाए खेतं । सव्वपंचि०तिरिक्ख- मणुस अपज • ० इतनी विशेषता है कि इनमें अवक्तव्य पद नहीं है । इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए | $ ७१. परिमाणानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश | ओघसे छह वृद्धि, छह हानि और अवस्थित अनुभागके उदीरक जीव कितने हैं ? अनन्त हैं । अवक्तव्य अनुभाग उदीरक जीव कितने हैं ? संख्यात हैं । इसी प्रकार तिर्यच्चोंमें जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि इनमें अवक्तव्य पद नहीं है। आदेशसे सब नारकी, सब पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च, मनुष्य अपर्याप्त और सामान्य देवोंसे लेकर अपराजित विमान तकके देवोंमें सब पदसम्बन्धी अनुभागके उदीरक जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं । इसी प्रकार सामान्य मनुष्यों में जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि इनमें अवक्तव्य अनुभागके उदीरक जीव कितने हैं ? संख्यात हैं। मनुष्य पर्याप्त, मनुष्यिनी और सर्वार्थसिद्धिके देवोंमें सब पदसम्बन्धी अनुभाग उदीरक जीव कितने हैं ? संख्यात हैं । इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए । $ ७२. क्षेत्रानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है- ओघ और आदेश । ओघसे छह बुद्धि, छह हानि और अवस्थित अनुभागके उदीरकौका कितना क्षेत्र है । सर्व लोकप्रमाण क्षेत्र है । अवक्तव्य अनुभागके उदीरकोंका क्षेत्र लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है। इसी प्रकार तिर्यञ्चों में जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनमें अवक्तव्य पद नहीं है। शेष गतियों में सब पदसम्बन्धी अनुभागके उदीरकोंका क्षेत्र लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए। $ ७३. स्पर्शनानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है ओघ और आदेश । ओघ से. अवक्तव्य अनुभागके उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। शेष पदसम्बन्धी अनुभागके उदीरकोने सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इसी तिर्यञ्चोंमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनमें अवक्तव्य पद नहीं है । आदेशसे नारकियोंमें सब पदसम्बन्धी अनुभागके उदीरकोंने लोक के असंख्यातवें भाग और त्रर्सनालीके चौदह भागों में से कुछ कम छह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इसी प्रकार दूसरीसे लेकर सातवीं पृथिवी तक नारकियोंमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि अपना-अपना स्पर्शन ५
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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