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________________ ३२ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ वेदगो ७ एग०, उक्क० अंतोमु० | देवाणं णारयभंगो । एवं सव्वदेवाणं । णवरि अप्पप्पणो ट्ठिी देखणा । एवं जाव० । $ ६९. णाणाजीवेहि भंगविचयाणुगमेण दुविहो णिद्देसो – ओघेण आदेसेण य । ओघेण छवडि- हाणि - अबट्ठि ० णियमा अत्थि, सिया एदे च अवतव्वगो च, सिया एदे च अवचव्वगा च । एवं तिरिक्खा ० । णवरि अवच० णत्थि । आदेसेण णेरइय० अनंतगुण वड्डि- हाणि ० णिय० अत्थि, सेसपदाणि भयणिज्जाणि । एवं सव्वणेरइयसव्वपंचिंदियतिरिक्ख- मणुसतिय सव्वदेवाचि । मणुस अपज्ज० सव्वपदा भयणिज्जा । एवं जाव० । $ ७०. भागाभागानुगमेण दुविहो णिद्देसो- ओघेण आदेसेण य । ओघेण अनंत गुणवडि० दुभागो सादिरेगो । अनंतगुणहाणि० दुभागो देसूणो । अवच० अनंतभागो । सेसपदा असंखे ० भागो । एवं सव्वणेरइय- सव्वतिरिक्ख - मणुसअपज ०- देवा जाव अवराजिदा ति । णवरि अवत्त० णत्थि । एवं मणुसेसु । णवरि अवत्त० सव्वजीव० के ० १ असंखे ० भागो । एवं मणुसपजः - मणुसिणीसु । णवरि संखेजं कायव्वं । एवं सव्वट्टे । णवरि अवत्त० णत्थि । एवं जाव० । समान भंग है । इसी प्रकार सब देवोंमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि कुछ कम अपनी-अपनी स्थिति कहनी चाहिए। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चारिए । $ ६९ नाना जीवोंकी अपेक्षा भंगविचयानुगमका अवलम्बन लेकर निर्देश दो प्रकार - का है - ओघ और आदेश । ओघसे छह वृद्धि, छह हानि और अवस्थित अनुभागके उदीरक जीव नियमसे हैं, कदाचित् ये नाना जीव हैं और एक अवक्तव्य अनुभागका उदीरक जीव है । कदाचित् ये नाना जीव हैं और नाना अवक्तव्य अनुभागके उदीरक जीव हैं । इसी प्रकार तिर्यञ्चों में जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनमें अवक्तव्य अनुभागके उदीरक जीव नहीं हैं। आदेशसे नारकियोंमें अनन्त गुणवृद्धि और अनन्त गुणहानि अनुभाग के उदीरक जीव नियमसे हैं, शेष पद भजनीय है। इसी प्रकार सब नारकी, सब पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च, मनुष्यत्रिक और सब देवों में जानना चाहिए । मनुष्य अपर्याप्तकोंमें सब पद भजन हैं । इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए । $ ७० भागाभागानुगमको अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है - ओघ और आदेश | ओघसे अनन्त गुणवृद्धि अनुभागके उदीरक जीव साधिक द्वितीय भागप्रमाण हैं । अनन्त गुणहानि अनुभागके उदीरक जीव कुछ कम द्वितीय भागप्रमाण हैं । अवक्तव्य अनुभागके उदीरक जीव अनन्तवें भागप्रमाण हैं। शेष पदसम्बन्धी अनुभागके उदीरक जीव असंख्यातवें भागप्रमाण हैं । इसी प्रकार सब नारकी, सब तिर्यञ्च, मनुष्य अपर्याप्त और सामान्य देवोंसे लेकर अपराजित विमान तक देवोंमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनमें अवक्तव्यपद नहीं है । इसी प्रकार मनुष्योंमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनमें अवक्तव्य अनुभागके उदीरक जीव सब जीवोंके कितने भागप्रमाण हैं ? असंख्यातवें भागप्रमाण हैं । इसी प्रकार मनुष्य पर्याप्त और मनुष्यिनियोंमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनमें असंख्यातवें भागके स्थानमें संख्यातवाँ भाग करना चाहिए । इसी प्रकार सर्वार्थसिद्धि में जानना चाहिए ।
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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