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________________ द जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ वेदगो ७ सव्वणेरइय-सव्वपंचिंदियतिरिक्ख-देवा' भवणादि जाव. अवराइदा त्ति । तिरिक्खा० सव्वपदा० सव्वद्धा । मणुसेसु णारयभंगो । णवरि अवता० जह० एयस०, उक्क संखेजा समया । एवं मणुसपज०-मणुसिणी० । णवरि संखेज़ कादवं । एवं सवढे । णवरि अवत्त० णत्थि । मणुसअपज० भुज०-अप्प० जह० एयस०, उक्क पलिदो० असंखे०भागो । अवढि० जह० एयस०, उक्क० आवलि० असंखे भागो । एवं जाव० । ५४. अंतराणुगमेण दुविहो णिद्देसो-ओघेण आदेसेण य । ओघेण भुज०अप्प०- अवढि० |ि अंतरं । अवत्त० जह• एयस०, उक्क. वासपुधत्तं । एवं तिरिक्खा० । णवरि अवत्त० णत्थि । आदेसेण णेरइय० भुज०- अप्प० गत्थि अंतरं । अवढि० जह० एगस०, उक्क० असंखेजा लोगा। एवं सव्वणेरइय-सव्वपंचिंदियतिरिक्ख-सव्वदेवा त्ति । मणुसतिये णारयभंगो । णवरि अवत्त० ओघं । मणुसअपज. देव और भवनवासियोंसे लेकर अपराजित विमान तकके देवों में जानना चाहिए। तिर्यञ्चोंमें सब पदोंके उदीरकोंका काल सर्वदा है । मनुष्योंमें नारकियोंके समान भंग है। इतनी विशेषता है कि अवक्तव्य पदके उदीरकोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है। इसी प्रकार मनुष्य पर्याप्त और मनुष्यिनियोंमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि आवलिके असंख्यातवें भागके स्थानमें संख्यात समय कहना चाहिए । इसी प्रकार सर्वार्थसिद्धिके देवोंमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनमें अवक्तव्य पद नहीं है। मनुष्य अपर्याप्तकोंमें भुजगार और अल्पतर पदके उदीरकोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है। अवस्थित पदके उदीरकोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए। विशेषार्थ यहाँ एक जीवकी अपेक्षा काल और ओघ तथा आदेशसे अपने-अपने परिमाणको जानकर नाना जीवोंकी अपेक्षा कालका विचार कर लेना चाहिए। विशेष वक्तव्य न होनेसे अलगसे स्पष्टीकरण नहीं किया है। ६५४. अन्तरानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश। ओघसे मुजगार, अल्पतर और अवस्थित पदके उदीरकोंका अन्तरकाल नहीं है । अवक्तव्य पदके उदीरकोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल वर्षपृथक्त्वप्रमाण है। इसी प्रकार तिर्यञ्चोंमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनमें अवक्तव्यपद नहीं है। आदेशसे नारकियोंमें भुजगार और अल्पतर पदके उदीरकोंका अन्तरकाल नहीं है। अवस्थित पदके उदीरकोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल असंख्यात लोकप्रमाण है। इसी प्रकार सब नारकी, सब पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च और सब देवोंमें जानना चाहिए । मनुष्यत्रिकमें नारकियोंके समान भंग है। इतनी विशेषता है कि इनमें अवक्तव्य पदके उदीरकोंका भंग ओघके समान है। मनुष्य अपर्याप्तकोंमें भुजगार और अल्पतर पदके उदीरकोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है। अव १० ता०प्रत्योः तिरिक्खतिय देवा इति पाठः ।
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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