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________________ गा० ६२ ] मूलपयडिअणुभागउदीरणाए पोसणं २५ ० $ ५२. आदेसेण णेरइय० सव्वपद० केवडि० पोसिदं ? लोग • असंखे ० भागों छ चोइस० । एवं विदियादि जाव सत्तमा ति । णवरि सगपोसणं । पढमाए खेत्तं । सव्वपंचि०तिरिक्ख- मणुसअपज्ज० सव्वपद० लोग० असंखे० भागो सत्र्वलोगो वा । एवं मणुसतिये । णवरि अवत्त ० लोग० असंखे ० भागो । देबेसु सव्वपद० लोग ० असंखे० भागो अट्ठ णव चोदस० । एवं सोहम्मीसाणेसु । भवण ० - वाण ०० - जोदिसि ० सव्वपद० लोग० असंखे०भागो अद्भुट्ठा वा अट्ठ णव चोइस० | सणकुमारादि जाव सहस्सारे त्ति सव्वपद० लोग० असंखे० भागो अट्ठ चोहस० । आणदादि जाव अच्चुदा ति सव्वपद० लोग० असंखे ० भागो छ चोदस० । उवरि खेत्तं । एवं जाव० । $ ५३. कालानुगमेण दुविहो णिसो- ओघेण आदेसेण य । ओघेण अवत्त ० जह० एस ०, उक्क० संखेज्जा समया । सेसपदा० सव्वद्धा । आदेसेण णेरइय० भुज० अप्प ० सव्वद्धा । अवट्ठि० जह० एयस०, उक्क० आवलि० असंखे ० भागो । एवं 01 $ ५२. आदेशसे नारकियोंमें सब पदोंके उदीरक जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? लोकके असंख्यातवें भाग और त्रसनालीके चौदह भागों में से कुछ कम छह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । इसी प्रकार दूसरी पृथिवीसे लेकर सातवीं पृथिवी तकके नारकियों में जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि अपना-अपना स्पर्शन कहना चाहिए। पहली पृथिवीमें क्षेत्र के समान भंग है । सब पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च और मनुष्य अपर्याप्तकों में सब पदोंके उदीरक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । इसी प्रकार मनुष्यत्रिकमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनमें अवक्तव्य पदके उदीरक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। देवोंमें सब पदोंके उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग और त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ और कुछ कम नौ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इसी प्रकार सौधर्म और ऐशान कल्पके देवोंमें जानना चाहिए । भवनवासी, व्यन्तर और ज्योतिषी देवोंमें सब पदोंके उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग तथा त्रसनालीके चौदह भागों में से कुछ कम साढ़े तीन भाग, कुछ कम आठ भाग और कुछ कम नौ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । सनत्कुमारसे लेकर सहस्रार कल्प तकके देवोंमें सब पदों के उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग और सनालीके चौदह भागों में से कुछ कम आठ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। आनतसे लेकर अच्युत कल्पतकके देवोंमें सब पदोंके उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग और त्रसनालीके चौदह भागों में से कुछ कम छह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । ऊपर क्षेत्रके समान भंग है। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए । विशेषार्थ – स्पर्शन विषयक स्पष्टीकरण सुगम है, इसलिए अलग से खुलासा नहीं किया है । तात्पर्य यह है कि जहाँ जो स्पर्शन है उसे ध्यानमें रखकर स्पष्टीकरण कर लेना चाहिए । $ ५३. कालानुगमको अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है— ओघ और आदेश । अवक्तव्य पदके उदीरकोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है । शेष पदोंके उदीरकोंका काल सर्वदा है। आदेशसे नारकियोंमें भुजगार और अल्पतर पदों के उदीरकोंका काल सर्वदा है । अवस्थित पद के उदीरकोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है । इसी प्रकार सब नारकी, सब पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च, ४
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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