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________________ ३२८ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ वेदगो ७ चेव उक्कस्सविदिसंतकम्मावलंबणादो। * णवणोकसायाणं जाओ हिदीओ बजझंति, ताओ थोवाओ। ६३६७. कुदो ? आबाहूणसगसगुक्कस्सट्ठिदिबंधपमाणत्तादो। * उदीरिजति संकामिन ति य संखेजगुणाओ। $ ३६८. कुदो ? सव्वासिं बंध-संकमणावलियाहिं उदयावलियाए च परिहीणचत्तालीससागरोवमकोडाकोडीमेत्तद्विदीणं संकामिजमाणोदीरिजमाणाणमुवलंभादो । * उदिण्णाओ विसेसाहियाओ। $३६९. केत्तियमेत्तो विसेसो ? एगहिदिमेत्तो। * संतकम्महिदीओ विसेसाहियाओ। ६ ३७० केत्तियमेत्तो विसेसो ? समयूणदोआवलिमेनो । किं कारणं ? समयूणुदयावलियाए सह संकमणावलियाए एत्थ पवेसुवलंभादो। एवमुक्कस्सटिदिअप्पाबहुअं समनं । समाधान-सम्पूर्ण आवलिमात्र है, क्योंकि सम्यग्दृष्टिके प्रथम समयमें ही उत्कृष्ट स्थितिसत्कर्मका यहाँ अवलम्बन है। विशेषार्थ-उदयावलिप्रमाण स्थितियोंका संक्रम नहीं होता, किन्तु सत्कर्मस्थितियोंमें उनका अन्तर्भाव हो जाता है। इसलिए यहाँ संक्रमित होनेवाली स्थितियोंसे सत्कर्मरूप स्थितियाँ आवलिमात्र अधिक कहीं है। * नौ नोकषायोंकी जो स्थितियाँ बँधती हैं वे स्तोक हैं। $ ३६७. क्योंकि वे आबाधा कम अपने-अपने उत्कृष्ट स्थितिबन्धप्रमाण हैं। * उनसे उदीर्यमाण और संक्रमित होनेवाली स्थितियाँ संख्यातगुणी हैं। ___$ ३६८. क्योंकि बंधावलि, संक्रमणावलि और उदयावलिसे न्यून चालीस कोड़ाकोड़ी सागरोपम प्रमाण सम्पूर्ण स्थितियाँ संक्रमित होती हुई और उदीरित होती हुई उपलब्ध होती हैं। * उनसे उदयरूप स्थितियाँ विशेष अधिक हैं। . $ ३६९. शंका-विशेषका प्रमाण कितना है ? समाधान-एक स्थितिमात्र है। * उनसे सत्कमें स्थितियाँ विशेष अधिक हैं। $ ३७०. शंका-विशेषका प्रमाण कितना है। समाधान—एक समय कम दो आवलिप्रमाण है, क्योंकि एक समय कम उदयावलिके साथ संक्रमणावलिका इनमें प्रवेश उपलब्ध होता है। विशेषार्थ-सोलह कषायोंका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध होकर बन्धावलिके बाद उनकी उदयावलिप्रमाण स्थितियोंको छोड़ कर अन्य सब स्थितियोंका नौ नोकषायरूप संक्रम होने पर नौ नोकषायोंका उत्कृष्ट स्थितिसत्कर्म एक आवलि कम चालीस कोड़ाकोड़ो सागरोपम पाया जाता है। यही बात यहाँ अल्पबहुत्वके प्रसंगसे बतलाई गई है। इस प्रकार उत्कृष्ट स्थिति अल्पबहुत्व समाप्त हुआ।
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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