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________________ गा० ६२] - बंधादिपंचपदप्पाबहुअं ३२७ ३६३. किंपमाणाओ ताओ ? दोहिं अंतोमुहुत्तेहिं उदयावलियाए च ऊणसत्तरिसागरोवमकोडाकोडिपमाणाओ। तं कथं ? मिच्छत्तस्स उक्कस्सट्ठिदि बंधिगणंतोमुहुत्तपडिभग्गो सव्वलहुं सम्मत्तं घेत्तण सम्मामिच्छत्तस्स उकस्सद्विदिसंतकम्ममुप्पाइय पुणो सव्वजहण्णेणंतोमुहुत्तेण सम्मामिच्छत्तमुवणमिय तं संतकम्ममुदयावलियबाहिरमुदीरेदि त्ति एदेण कारणेणाणंतरणिहिट्ठपमाणाओ होदूण थोवाओ जादाओ। * उदिण्णाओ हिदीओ विसेसाहियाओ। ६३६४. केत्तियमेत्तो विसेसो ? एगहिदिमेत्तो। कुदो ? तत्कालवेदिजमाणुदयट्टिदीए वि एत्थतन्भूदत्तादो। * संकामिजति द्विदीओ विसेसाहियाओ। ६३६५. केत्तियमेत्तो विसेसो ? अंतोमुत्तमेत्तो। कुदो ? मिच्छत्तक्कस्सद्विदि बंधियूण सम्मत्तं पडिवण्णविदियसमए चेव सम्मामिच्छत्तस्सुक्कस्सट्ठिदिसंकमावलंबणादो । * संतकम्महिदीओ विसैसाहियाओ। $३६६. केत्तियमेत्तो विसेसो ? संपुण्णावलियमेत्तो । कुदो १ सम्माइट्ठिपढमसमए $ ३६३. शंका-उनका प्रमाण क्या है ? समाधान—दो अन्तर्मुहूर्त और उदयावलि कम सत्तर कोडाकोड़ी सागरोपमप्रमाण है। शंका-वह कैसे ? समाधान मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्धकर अन्तर्मुहूर्तमें प्रतिभग्न हुआ जो जीव अतिशीघ्र सम्यक्त्वको ग्रहण करनेके साथ सम्यग्मिथ्यात्वके उत्कृष्ट स्थितिसत्कर्मको उत्पन्नकर पुनः सबसे जघन्य अन्तर्मुहूर्त कालके बाद सम्यग्मिथ्यात्वको प्राप्तकर उदयावलिके बाहर स्थित उस सत्कर्मकी उदीरणा करता है उस जीवके इस कारण वे उदीयमाण स्थितियाँ अनन्तर निर्दिष्ट प्रमाण होनेसे सबसे स्तोक हैं। * उनसे उदयरूप स्थितियाँ विशेष अधिक हैं । ६३६४. शंका-विशेषका प्रमाण कितना है ? समाधान--एक स्थितिमात्र है, क्योंकि तत्काल वेद्यमान उदयस्थितिकी इन स्थितियों में सम्मिलित है। * उनसे संक्रमित होनेवाली स्थितियाँ विशेष अधिक हैं । $ ३६५. शंका-विशेषका प्रमाण कितना है ? समाधान–अन्तर्मुहूर्तमात्र है, क्योंकि मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिको बाँधकर सम्यक्त्वको प्राप्त होनेके दूसरे समयमें ही सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितियोंके संक्रमका यहाँ अवलम्बन है। * उनसे सत्कर्मस्थितियाँ विशेष अधिक हैं । $ ३६६. शंका-विशेषका प्रमाण कितना है ?
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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