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________________ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे $ ३३३. भावानुगमेण सव्वत्थ ओदइओ भावो । $ ३३४. अप्पा बहुआणुगमेण दुविहो णिसो – ओघेण आदेसेण य । ओघेण अवट्ठि० उदीरगा अनंतगुणा । भुजगार० सम्म० -- सम्मामि० -- सोलसक० --अटुणोक ० असंखे० गुणा । भुजगार० असंखे ० गुणा । मिच्छ०--णव स० सव्वत्थोबा अवत्त० । असंखे० गुणा । अप्पदर० विसेसाहिया सव्वत्थोवा अवट्टिउदी० । अवत्त० पदेसुदी० अप्पदर० विसेसाहिया । एवं तिरिक्खाणं । । ३१६ [ वैदगो ७ $ ३३५. आदेसेण णेरइय० सव्वत्थोवा मिच्छ० अवत्त० । अवडि० असंखे ० गुणा । उवरि ओघं । सम्म० -- सम्मामि ० - सोलसक० -- सत्तणोक० ओघं । णवरि ण स ० अवत्त ० णत्थि । एवं सव्वणिरय० । $ ३३६. पंचिदियतिरिक्खतिये ओघं । णवरि मिच्छ० -- णवुंस० सव्वत्थोवा अवस० । अवट्ठि० असंखे० गुणा । उवरि ओघं । णवरि पज्ज० इस्थिवे ० णत्थि । व स० पुरिसवेदभंगो । जोणिणीसु पुरिसवे० - ण स ० णत्थि । इत्थिवेद० अबस ० णत्थि । पंचिं० तिरि० अपज ० - मणुसअपज० मिच्छ० - सोलसक० - सत्तणोक० ओघं । वरि मिच्छ०-- णव स० अवत्त० णत्थि । $ ३३३. भावानुगमकी अपेक्षा सर्वत्र औदयिक भाव है । $ ३३४. अल्पबहुत्वानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओ से मिथ्यात्व और नपुंसकवेदके अवक्तव्य प्रदेश उदीरक जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे अवस्थित प्रदेश उदीरक जीव अनन्तगुणे हैं। उनसे भुजगार प्रदेश उदीक जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे अल्पतर प्रदेश उदीरक जीव विशेष अधिक हैं । सम्यक्त्व, सम्यग्मिध्यात्व. सोलह कषाय और आठ नोकषायोंके अवस्थित प्रदेश उदीरक जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे अवक्तव्य प्रदेश उदीरक जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे भुजगार प्रदेश उदीरक जीव असंख्यात - गुणे हैं। उनसे अल्पतर प्रदेश उदीरक जीव विशेष अधिक हैं । ३३५. आदेशसे नारकियों में मिथ्यात्वके अवक्तव्यप्रदेशउदीरक जीव सबसे स्तोक हैं । उनसे अवस्थित प्रदेशउदीरक जीव असंख्यातगुणे हैं। आगे ओघके समान भंग है । सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व, सोलह कषाय और सात नोकषायोंका भंग ओघके समान है । इतनी विशेषता है कि नपुंसकवेदका अवक्तव्य पद नहीं है। इसी प्रकार सब नारकियों में जानना चाहिए । $ ३३६. पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चनिकमें ओघके समान भंग है । इतनी विशेषता है कि इनमें मिथ्यात्व और नपुंसकवेदके अवक्तव्यप्रदेश उदीरक जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे अवस्थित प्रदेशउदीरक जीव असंख्यातगुणे हैं। आगे ओघके समान भंग है । इतनी विशेषता है कि तिर्यञ्च पर्याप्तकों में स्त्रीवेद नहीं है तथा नपुंसकवेदका भंग पुरुषवेदके समान है । तिर्यख योनिनियों में पुरुषवेद और नपुंसकवेद नहीं है तथा इनमें स्त्रीवेदका अवक्तव्य पद नहीं है । पचेन्द्रियतिर्यअपर्याप्त और मनुष्य अपर्याप्तकों में मिथ्यात्व, सोलह कषाय और सात नोकषायों का भंग ओघ के समान है । इतनी विशेषता है कि इनमें मिथ्यात्व और नपुंसकवेदका अवक्तव्यपद नहीं है ।
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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