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________________ गा०६२] ३१५ __- उत्तरपयडिपदेसउदीरणाए भुजगारो ३३०. तिरिक्खेसु ओघं । पंचिंदियतिरिक्खतिये णारयभंगो । णवरि णस० अवत्त० ओघं । इत्थिवेद-पुरिसवेद० ओघं । पज्जत्त० इत्थिवेदो णत्थि । जोणिणीसु पुरिस०-णवुस० णत्थि । इथिवे. अवत्त० णत्थि । पंचिं०तिरिक्खअपज्ज० मिच्छ०सोलसक०-सत्तणोक० णारयभंगो। णबरि मिच्छ० अवत्त० णत्थि । $ ३३१. मणुसतिये पंचिदियतिरिक्खतियभंगो । णवरि मणुसिणी० इात्थवेद. अवत्त० जह० एयस०, उक्क. वासपुधत्तं । मणुसअपज्ज० मिच्छ०-सोलसक०-सत्तणोक० अवढि० णारयभंगा । सेसपदा० जह० एयस०, उक्क० पलिदोवमस्स असंखेजदिभागो। ३३२. देवाणं पंचिं०तिरिक्खभंगो । णवरि णबुसय० णत्थि। इत्थिवे०-- पुरिसवे० अवत्त० णत्थि । एवं भवणादि जाव सोहम्मा ति । एवं सणकुमारादि णवगेवेजा त्ति । णवरि इथिवे० पत्थि । अणुदिसादि सव्वट्ठा ति सम्म०-बारसक०--सत्तणोक० देवोध । णवरि सम्म० अवत्तव्व० जह• एगस०, उक्क० वासपुधत्तं । सव्वढे पलिदो० संखे० भागी। एवं जाव० । $३३०. तिर्यञ्चोंमें ओघके समान भंग है । पञ्चेन्द्रियतिर्यश्चत्रिक में सामान्य नारकियोंके समान भंग है। इतनी विशेषता है की इनमें नपुंसकवेदके अवक्तव्य प्रदेश उदीरकोंका भंग ओघके समान है । स्त्रीवेद और पुरुषवेदका भंग ओवके समान है। तिर्थश्च पर्याप्तकों में स्त्रीवेद नहीं है और तिर्यञ्चथोनिनियोंमें पुरुषवेद तथा नपुंसकवेद नहीं है, तथा इनमें स्त्रीवेदका अवक्तव्य पद नहीं है। पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्च अपर्याप्तकोंमें मिथ्यात्व, सोलह कषाय और सात नोकषायोंका भंग सामान्य नारकियोंके समान है। इतनी विशेषता है कि इनमें मिथ्यात्वका अवक्तव्य पद नहीं है। $ ३३१. मनुष्यत्रिकमें पञ्चेन्द्रियतिर्यञ्चत्रिकके समान भंग है। इतनी विशेषता है कि मनुष्यिनियोंमें स्त्रीवेदके अवक्तव्य प्रदेश उदीरकोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल वर्षप्रथक्त्वप्रमाण है। मनुष्य अपर्याप्तकोंमें मिथ्यात्व, सोलह कषाय और सात नोकषायोंके अवस्थित पदका भंग नारकियोंके समान है। शेष पद-प्रदेश उदीरकोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल पल्योपमके असंख्यातवें भाग प्रमाण है। $ ३३२. देवोंमें पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्चोंके समान भंग है । इतनी विशेषता है कि इनमें नपुंसकवेद नहीं है । तथा स्त्रीवेद और पुरुषवेदका अवक्तव्य पद नहीं है । इसी प्रकार भवनवासियोंसे लेकर सौधर्म-ऐशान, कल्प तकके देवोंमें जानना चाहिए। इसी प्रकार सनत्कुमार कल्पसे लेकर नौ प्रैवेयक तकके देवोंमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनमें स्त्रीवेद नहीं है। अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देवोंमें सम्यक्त्व बारह कषाय और सात नोकषायोंका भंग सामान्य देवोंके समान है। इतनी विशेषता है कि इनमें सम्यक्त्वके अवक्तव्य प्रदेश उदीरकोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल नौ अनुदिश और चार अनुत्तर विमानों में वर्षपृथक्त्वप्रमाण है तथा सर्वार्थसिद्धि में पल्योममके संख्यातवें भागप्रमाण है।
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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